Home News अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रहे गतिरोध को दूर करने के लिए आलाकमान सक्रिय।

अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रहे गतिरोध को दूर करने के लिए आलाकमान सक्रिय।

by marmikdhara
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जयपुर,    भंवर जितेंद्र सिंह तथा विश्वेंद्र सिंह के द्वारा सचिन पायलट के समर्थन में गए हुए शब्दों के आलाकमान सक्रिय हुए हैं। प्रारंभिक आधार पर ऐसा कयास लगाया जा रहा है। सुलह का फार्मूला बनने वाला है क्योंकि पायलट ना तो राजस्थान की राजनीति छोड़कर जाना चाहते हैं और ना ही गहलोत मंत्रिमंडल में वापस आना चाहते हैं। पायलट का किसी दूसरी पार्टी में जाने का भी कोई विचार नहीं है। इस कारण से आलाकमान सुलह का फार्मूला बनाने लगे हैं।

पायलट केवल अपने समर्थक विधायकों को मंत्रिमंडल व राजनीतिक नियुक्तियां दिलाना चाहते हैं।

पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट दिल्ली आलाकमान द्वारा 10 माह पूर्व किए गए वादों को पूरा कराना चाहते हैं। वह अपने लिए कोई पद नहीं चाहते। अपने समर्थकों को मंत्रीमंडल व राजनीतिक नियुक्तियां दिलाना चाहते हैंऔर यह वादा उन्होंने आलाकमान से 10 माह पूर्व ही लिया था। गहलोत यह काम किसी दबाव में नहीं करना चाहते। गहलोत अपनी शर्तों पर ही फैसला करना चाहते हैं। गहलोत ने आलाकमान को संकेत दिए हैं कि राज्य में कोरोना नियंत्रण में आने लगा है अभी मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियां करने को तैयार हैं।

कांग्रेस प्रदेश प्रभारी अजय माकन का कहना है इस समस्या का शीघ्र निपटारा किया जाएगा।

प्रदेश प्रभारी अजय माकन का कहना है कि पायलट के द्वारा बताए हुए मुद्दों पर पार्टी काम कर रही है। एक बार दोनों के साथ वर्चुअल बैठक हुई अब शनिवार को फिर मिलेंगे। जितिन प्रसाद के पार्टी छोड़कर जाने का असर यह हुआ है कि 10 माह से पायलट की अनदेखी कर रहे आलाकमान ने सक्रियता दिखाते हुए राजस्थान के मसलों को शीघ्र निपटाने की कोशिश प्रारंभ कर दी है।

गहलोत के आगे आलाकमान तक कमजोर

कांग्रेस कांग्रेस कार्यकर्ता दबी आवाज में यह मानते हैं कि वर्तमान में दिल्ली में कोई ऐसा नहीं है जो गहलोत पर दबाव बनाकर फैसले करा सके। दिल्ली में जो नेता बैठे हैं वह सब गहलोत से काफी जूनियर हैं। इसलिए जो भी फैसले होंगे। वह गहलोत की बिना इच्छा के नहीं हो सकते हैं। क्योंकि पिछले साल पायलट की बगावत के समय जिस राजनीतिक कौशल से अपनी कुर्सी बचाए उसमें उन्होंने यह संदेश दे दिया कि वह किसी भी परिस्थिति से अच्छी तरीके से निपट सकते हैं। उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है। गहलोत की ही रणनीति का परिणाम है कि पिछले 1 साल में पायलट समर्थक हाशिए पर चले गए हैं। गहलोत ने राजनीतिक कौशल से पायलट के कई समर्थकों को अपने पाले में ले लिया है।

अजय सिंह भाटी (मार्मिक धारा)
हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)

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