कोरोना काल में मौतों का आंकड़ा कुछ इस तरह बड़ा की शमशान में लकड़ियां कम पड़ने लगी है। इस परेशानी की जानकारी अजमेर जिले के ब्यावर में यूवको तक पहुंची, तो उन्होंने फौरन ही इस समस्या से निदान का रास्ता खोज निकाला। युवाओं ने घर-घर से संपर्क करना प्रारंभ किया। बेकार पड़ी लकड़ियां इकट्ठी की और शमसान पहुंचाने लगे। आज स्थिति यह है कि शमशान में लकड़ियों का पर्याप्त स्टॉक हो गया है। बावजूद इसके युवाओं का सेवा कार्य जारी है।
दीपक गहलोत ने बताया कि कोरोना काल में फ्री बैठा था। सुना कि श्मशान घाटों पर दाह संस्कार के लिए लकड़ियों की कमी होने लगी है। इस पर दोस्तों ने साथ विचार विमर्श किया और अलग-अलग जगह से लकड़ियों को एकत्र करने का काम शुरू कर दिया। लकड़ियों को काटने के लिए मशीन का बंदोबस्त भी मिलकर किया। लकड़ियां अलग-अलग क्षेत्रों से जुटाई और अपने ही टेंपो में श्मशान घाटों तक पहुंचाया। लोगों ने भी सहयोग किया और हमारी इस पहल को सफलता मिली। आज किसी भी श्मशान स्थल पर लकड़ियों की कोई कमी नहीं है।
कोरोना काल में दाह संस्कार के लिए लकड़ियों की कमी नहीं हो, इसके लिए श्री जीव दया सेवा संस्था ने भी पहल की। शहर के अलग-अलग जगहों से शवदाह के लिए लकड़ियां एकत्र कर श्मशान घाट पहुंचाई। वार्ड नंबर 20 के पार्षद विकास दगदी व संस्था सचिव कपिल सेन आदि ने बताया कि घर में पड़ी बेकार लकड़ियों को इकट्ठा करके फिर शमशान पहुंचाते हैं। कई जगह पेड़ सूख गए हैं, या गिर गए हैं उसे भी गाड़ियों में भरकर पहुंचाते हैं।
अजय सिंह भाटी (मार्मिक धारा)
हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)