11मई, सोमवार को मीडिया की खबरों को आधार बनाकर जयपुर हाई कोर्ट में पीआईएल दाखिल की गई है। हाईकोर्ट के अधिवक्ता विजय गोयल ने बताया कि शहर की राजकीय आरबीएम अस्पताल से 10 वेंटीलेटर देने के मामले को लेकर पीआईएल दाखिल की गई है। गोयल ने बताया कि सरकार ने वेंटिलेटर देने से पहले कोई दर है क्यों नहीं तय की? जबकि अब 2000 रुपए तय की गई है। इसके विपरीत अस्पताल मनमाने ढंग से 35000 से 38000 रुपए वसूल कर रहा है। पीआईएल में पूछा है कि वेटिलेटर किस प्रोविजन के तहत अलॉट किए गए थे? जबकि पीएम रिलीफ फंड से यह वेंटिलेटर गरीबों के उपचार के लिए पहुंचे थे। यदि आरवीएम में यह काम नहीं आ रहे थे तो आरबीएम में सुविधाओं का विस्तार क्यों नहीं किया गया? खास बात यह है कि जब वेंटिलेटर दिए भी है तो इन पर रेट कैंप क्यों नहीं लगाया? निजी अस्पताल को इसके लिए पाबंद किया जाना चाहिए कि वह सरकारी रेट से अधिक राशि वसूल नहीं करेगा। पीआईएल में यह भी लिखा है कि जानकारी में आया कि सरकारी कर्मियो के रिश्तेदार भी वहां भर्ती हैं।
वहीं दूसरी तरफ जब जनरल हॉस्पिटल का मामला तूल पकड़ता देख राज्य के चिकित्सा राज्य मंत्री सुभाष गर्ग का एक लीपापोती करने वाला ऐसा बयान सामने आया है। जिसमें राज्यमंत्री ने गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए रोगियों से अधिक वसूली करने वाले निजी अस्पताल पर जांच के आदेश प्रशासनिक अधिकारियों को दिए हैं। लेकिन अपने बयान में सुभाष गर्ग ने प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई का कोई जिक्र नहीं किया है। तो क्या प्रशासनिक अधिकारियों और निजी अस्पतालों की मिलीभगत अलग-अलग है?
गर्ग के बयान में एक ऐसा विरोधाभास भी है। जिसे पचाया नहीं जा सकता है। यह विरोधाभास यह है कि जिन प्रशासनिक अधिकारियों ने सरकारी अस्पताल में वेंटिलेटरो की कमी से जूझ रहे मरीजों का चिंता किए बिना निजी अस्पतालों के खिलाफ कार्यवाही का जिम्मा सौपा है जो हास्यास्पद तो है साथ ही आमजन को गुमराह करने वाला भी है। यानि गर्ग साहब ने यह कहावत चरितार्थ कर दी।”सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी”इसे कहते हैं राजनीति। वहीं दूसरी तरफ निजी हॉस्पिटल को मालूम है।”सैया थानेदार तो डर काहे का “अब कोर्ट ही कुछ करेंगा।
हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)