पाठकों “जीवन जीने की कला” नामक शीर्षक की सीरीज के अंतर्गत एक सत्य घटना पर आधारित एक कहानी लिख रहा हूं। आजकल के युवा जिस भटकाव की ओर है। वह इस सच्ची कहानी से शायद कुछ सीख ले सकें।यदि आप भी इस कहानी से कुछ महसूस कर सकें तो शायद मेरी यह कहानी सफल हो जाएगी। यदि कोई कमी रह जाती है ।उसका मैं क्षमा प्रार्थी हूं।
आइए, मित्रों इस कहानी के बारे में कुछ तथ्य बताता हूं। मैंने जैसे कहा यह कहानी सत्यता पर आधारित है। केवल एक किरदार का नाम परिवर्तन किया गया है। यह कहानी 2019 की है।
जैसा कि मैं अपने बारे में आपको पहले की कहानियों में बता चुका हूं। मैं एक छोटा सा स्कूल व छोटी सी कोचिंग चलाता हूं। जिस परिसर में स्कूल कोचिंग हैं। वहां बेसमेंट में कोचिंग तथा ग्राउंड फ्लोर व ऊपर तीन मंजिल में स्कूल चलता है। इन चीजों को बताना इसलिए जरूरी है। जिससे आपको कहानी आसानी से समझ में आ सके। मैं और मेरी पत्नी दोनों मिलकर स्कूल कोचिंग चलाते हैं तथा हम दोनों डायरेक्टर हैं।
यह घटना 27 जनवरी की है। यह जिसकी कहानी है। वह एक अध्यापिका हैं। तथा हमारे स्कूल में पढ़ाती हैं। उनका नाम अपूर्वा है। वह एमएससी मैथ्स में है। वह बहुत अधिक योग्य व कठिन परिश्रमी है। उन्होंने हमारा सारा स्कूल संभाल रखा है। इसलिए हमने उनको इंचार्ज बना रखा है।
यह घटना 27 जनवरी की है। मैं सुबह 10:00 बजे अपनी प्रतियोगी परीक्षा क्लास लेकर अपने ऑफिस में आकर बैठा । मेरी पत्नी (जिसका नाम अंजली है )मेरे केबिन में आई और बोली
अंजली— क्लास पूरी हो गई क्या?
हर्षवर्धन—हां, पूरी हो गई, दूसरे सर क्लास लेने गए हैं।
अंजली—चाय मंगा देती हूं।
हर्षवर्धन—हां चाय मंगा दो और अपूर्वा मैडम को भी भेज दो।
अंजली—अब आप कुछ मत कहना मैंने बोल दिया है। वह बीमार थी।
हर्षवर्धन–अंजलि तू नहीं समझेगी कि मैडम मैं बहुत बड़ी गलती की है। यह तो एक बहाना है।
अंजली— मैं मैडम को बुला रही हूं। लेकिन ज्यादा कुछ मत कहना, कहना हो तो मेरे सामने कहना।
हर्षवर्धन—ठीक है।
(तभी चपरासी चाय लेकर आया तो मैंने उससे कहा कि वह तीन कप चाय लाए और अंजली मैडम को भी भेज देना। तभी अपूर्वा मैडम आई और चपरासी चला गया)
अपूर्वा–मे आई कम इन सर।
हर्षवर्धन—यस मैडम, आइए बैठिए।
(मैडम कुर्सी पर बैठ जाती है तब मैं जैसे ही कुछ कहता हूं साथ-साथ मेरी पत्नी भी केविन में आ जाती है और मैंने कहना शुरू किया)
हर्षवर्धन—मैडम आपने कितनी बड़ी लापरवाही की है। 26 जनवरी के पूरे समारोह की जिम्मेदारी आप की थी और आपने 25 व26 को बिना बताए छुट्टी ले ली। आप जानती हैं। कि हमें कितनी परेशानी उठानी पड़ी। वह तो अंजलि ने सारा समारोह संभाल लिया वरना कितनी प्रॉब्लम हो जाती। आप जानती हैं कि चीफ गेस्ट हाई कोर्ट के जज थे। उनके सामने हमारा क्या प्रभाव जाता ? अगर आप बीमार भी थी तो भी आ जाती। आप कुर्सी पर बैठी रहती लेकिन आपको स्कूल जरूर आना चाहिए। मैं आपको बहुत अधिक जिम्मेदार समझता हूं। आप इतने सालों से कार्य कर रही हैं। मुझे नहीं पता कि आप इतनी बड़ी लापरवाही कर सकती हैं। अब मुझे आपको कोई जिम्मेदारी देने से भी भय लगता है। अगर आप की जगह कोई और होता तो शायद आज उसका का आखिरी दिन होता है यानी मैं स्कूल से उसे निकाल देता ।आप इतने सालों से कार्य कर रहे हैं तो आपको आखिरी चेतावनी है कि दोबारा आप ऐसा नहीं करेंगी।
अपूर्वा—सर मेरी तबीयत खराब हो गई थी।
हर्षवर्धन—मैडम, तबीयत खराब होने पर भी हम रोज क्लास लेते हैं। मैडम आप बहाने मत बनाइए।
(शायद मैंने मैडम को ज्यादा ही डांट दिया वह रोने लग गई। तभी बीच में मेरी पत्नी ने टोका-)
अंजली—आप पूरी बात सुन लीजिए। क्या तबीयत खराब नहीं हो सकती है ?
(अंजलि ने चपरासी से पानी मंगाया और मैडम को पानी पिलाया बड़े प्यार से पूछा)
अंजली— कोई बात नहीं मैडम। वैसे क्या हो गया था आपको?
अपूर्वा–मैडम, आप अक्सर मुझसे पूछती रहती हैं कि तुम रोज कौन सी दवा खाती हो।
अंजली—हां पूछते हूं। लेकिन आज तक आपने कोई जवाब नहीं दिया।
अपूर्वा—मैडम मैं ब्लड प्रेशर की मरीज हूं।
(यह सुनकर हम दोनों पति पत्नी को बड़ा आश्चर्य हुआ। क्योंकि मैडम जी उम्र मात्र 27 साल की थी। वह हमसे आठ, 9 साल छोटी थी। इतनी कम उम्र में ब्लड प्रेशर का मरीज होना आश्चर्य की बात है।)
हर्षवर्धन—वैसे तो मैडम किसी भी उम्र में कोई भी बीमारी हो सकती है। लेकिन इतनी कम उम्र में ब्लड प्रेशर की बीमारी बड़ा आश्चर्य है।
अंजली—ब्लड प्रेशर तो मैडम, चिंता से होता है। कोई चिंता है क्या आपको?
हर्षवर्धन—मैडम अगर कोई परेशानी है तो आप मुझे बड़ा भाई मानकर मुझे बता सकते हैं।
(अपूर्वा रोने लग गई)
हर्षवर्धन—-अगर अपनी बात आप किसी से नहीं कहेंगे तो आप दुखी होती रहेंगी।
अपूर्वा—सर मैं आपको बड़ा भाई मानती हूं। अधिकतर हर समस्या में आपसे कहती हूं इसलिए आज मैं आपको अपने जीवन का सबसे बड़ा दुख बता रही हूं।
हर्षवर्धन—मैडम, मैंने आपको हमेशा बहन माना है। इसलिए आप बड़ी आसानी से मुझे बता सकते हैं।
अंजली—आप हमारे परिवार का ही हिस्सा है। क्योंकि विद्यालय परिसर में कार्य करने वाले सभी लोग एक परिवार की तरह है।
अपूर्वा—मैडम, मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल जो मैं आपको बता रही हूं। मैडम, हम छोटे शहर में रहते थे। मेरे पिताजी शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। हम 3 बहने थी। मैं सबसे बड़ी बहन हूं। मेरे माता-पिता मुझे सबसे समझदार समझते थे। मैंने एमएससी की तथा पढ़ाई में बहुत होशियार थी। मैं सभी बहनों से पढ़ाई में सबसे होशियार थी। मैंने अपने जीवन में कभी भी किसी लड़के की तरफ नहीं देखा। अगर किसी लड़के से बात की तो केवल पढ़ाई से संबंधित बात की। एमएससी के साथ मैंने स्कूल में भी पढ़ाना शुरू कर दिया। हमारा स्कूल और हमारे घर के बीच की दूरी लगभग 2 किलोमीटर की थी। छोटे शहर में 2 किलोमीटर भी बहुत होता है। कॉलेज तक में कॉलेज बस द्वारा ही स्कूल गई। घर से स्कूल तक ही मेरे जीवन का सफर था। वास्तविक रुप से पहली बार मैं घर से बाहर निकली। रास्ते में एक लड़का मेरा पीछा करता था। पहले तो मुझे वह अच्छा नहीं लगता था लेकिन धीरे धीरे मुझे उससे प्रेम होने लगा। और मैं उसे पसंद करने लगी। वह मेरी जाति का भी नहीं था। मुझे पता था कि मेरे पिताजी कभी भी इससे शादी की इजाजत नहीं देंगे। हम दोनों ने भाग कर शादी करने की योजना बनाई। उसके पास मंदिर में शादी के पैसे भी नहीं थे। 1 महीने की सैलरी मैंने उसको दी। तब मेरे पिताजी मेरी सगाई की तैयारी कर रहे थे। उन्होंने मुझसे मेरी सैलरी मांगी तो मैंने उनसे झूठ बोला है कि मैंने कपड़े खरीद लिया और किताबें खरीद ली। पापा गहराई से पूछताछ कर रहे थे तभी मां ने बीच में आकर कहा,” मुझे मेरी बेटी पर पूर्ण विश्वास है। अगर इस महीने इसमें पैसे खर्च भी कर दिया तो क्या हुआ? अगले महीने इसकी शादी हो जाएगी उसके बाद भी सैलरी की पूछताछ करोगे क्या?”तो मेरे पिताजी ने कहा,”इसकी इतनी सी सैलरी से मुझे कुछ फायदा नहीं लेकिन यह हमेशा सारी सैलरी देने के बाद मुझसे पैसे लिया करती थी । आज कुछ अलग हुआ, बस इस बात का मुझे आश्चर्य हुआ। कोई बात नहीं बस बेटा हमेशा मेरी इज्जत का ध्यान रखना क्योंकि तू मेरा गौरव है।”
पापा जी द्वारा कही इस बात में एक बार तो मुझे भाग कर शादी करने के विचार पर अंकुश लगा दिया।लेकिन उस मूर्खता से पूर्ण प्यार ने मेरी सोचने व समझने की शक्ति को बिल्कुल क्षीण कर दिया था कि जो लड़का माला, फूल, मंगलसूत्र, पूजा का सामान और पंडित की दक्षिणा नहीं दे सकता वह मेरे जीवन का निर्वाह कैसे करेगा? इसमें मात्र ₹9000 खर्च हुए। लेकिन उसके पास 9000 भी नहीं थे। यहां तक कि वह जिस मोटरसाइकिल से मेरे पीछे आता था वह भी उसके दोस्त की थी। अगले महीने की 4 दिसंबर को मैं और वह दोनों घर से भाग गए। 2 घंटे में हमें पुलिस ने पकड़ भी लिया। पुलिस ने पापा को बुलाया लेकिन मैंने कहा कि मैं बालिंग हूं । मेरे पापा मेरे आगे बहुत रोए उन्होंने मुझे बहुत समझाया। लेकिन मैंने उनकी एक न मानी। आखिरकार हार कर वह थाने से वापस आ गए और उस दिन से उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया अर्थात उनको इतना सदमा लगा कि वह मात्र 15 दिन में ही मर गए। मरते समय मेरी बहनों व मेरी मां से कहा कि मेरी आखिरी इच्छा है कि अपूर्वा को मेरी लाश भी नहीं दिखनी चाहिए। और भविष्य में तुममे से कोई भी उससे किसी तरह का संबंध नहीं रखेगा। मुझे भी बहुत दुख हुआ लेकिन मुझे आखरी दर्शन भी नहीं करने दिए। दूसरी तरफ शादी करने के बाद वह मुझे अपने घर लेकर गया तो वहां पता चला कि उसकी मां मर गई है। उसकी वह सौतेली मां है तथा उनका घर भी किराए का था। जिसे लेकर मैं प्रेम में दीवानी हुई वह 12वीं क्लास भी पास नहीं था। वह किसी भी योग्य नहीं था और मैं उसके कारण अपने परिवार का बलिदान कर आ चुकी थी। 3 महीने बाद उसकी सौतेली मां ने भी घर से निकाल दिया। हम रोड पर आ गए। फिर धीरे-धीरे मैंने जोर देकर उन्हें बीए कराया और मैं सर आपके स्कूल में कार्य करती हूं तथा पूरे दिन ट्यूशन पढ़ाती हूं। मैंने अपनी मां से मिलने की कोशिश की और अपनी मां से अपने दुखों का वर्णन किया तो मेरी मां ने कहा इन सब दुखों का तू ही कारण है इसलिए तुझे तो भोगना ही पड़ेगा तथा तेरे साथ हमें भी भोगना पड़ा। मेरी मां ने यहां तक कहा तू पैदा होते ही मर क्यों नहीं गई। पिताजी की नौकरी मेरी छोटी बहन को मिल गई बीच वाली बहन भी अधिकारी है दोनों का जीवन बहुत ही अच्छा है मैं अपने पति को छोड़ना भी चाहती थी लेकिन उसके अलावा मेरा कोई सहारा नहीं है। मैं घुट घुट कर जी रही हूं मेरे पिताजी ने एक अधिकारी मेरे लिए तय किया। यदि मैं मूर्खता नहीं करती तो आज मेरा भी जीवन सुख में होता। जो संतान अपने माता पिता के विरुद्ध कोई कार्य करती है उसकी सजा भुगतनी तो पड़ती है। बस सर उसी सजा को मैं भुगत रही हूं।4 दिन के मूर्खता के लिए मैंने अपने पिताजी का 24 साल का प्रेम ठुकरा दिया।मैं मरना भी चाहती थी लेकिन मेरी एक संतान है उसी के कारण मैं मर भी नहीं सकती। सर मैं सभी से कहती हूं जो भी मां-बाप की इच्छा के विरुद्ध शादी करते हैं उनका जीवन नर्क बन जाता है इस जीवन में जन्म देने वाले ही हमारे भगवान हैं। उनके फैसले गलत नहीं जाते। और वह रोने लगी हम दोनों बिल्कुल चुप हो गए ऐसा कहकर वहां केबिन से बाहर निकल गई। अपूर्वा की कहानी सुनकर मुझे इस बात का भी एहसास हुआ कि माता पिता कभी भी बच्चों के साथ बुरा नहीं कर सकते। यदि हम उनके खिलाफ कुछ भी करेंगे तो उसका कोई समाधान नहीं है अपूर्वा मैडम के पास पश्चाताप के अलावा कोई चारा नहीं है
हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)