Home Story Time जीवन में चिंता को कोई जगह मत दीजिए क्योंकि भविष्य का किसी को नहीं पता।

जीवन में चिंता को कोई जगह मत दीजिए क्योंकि भविष्य का किसी को नहीं पता।

by marmikdhara
0 comment

पाठकों “जीवन जीने की कला” नामक शीर्षक सीरीज के अंतर्गत एक सच्ची घटना मैं आपको बता रहा हूं। भविष्य को लेकर बड़े चिंतित रहते हैं। लेकिन मित्रों भविष्य के एक क्षण का भी हमें पता नहीं है। फिर हम भविष्य की इतनी चिंता क्यों करते हैं? यह कहना बहुत आसान है। वास्तविकता में चिंता हर व्यक्ति करता है तथा भविष्य के बारे में अपनी अलग अलग राय रखता है। हम भी करते हैं। लेकिन इस कहानी में यही बताया गया है। हमें अपने जीवन में व्यर्थ की चिंता नहीं करनी चाहिए। यह सच्ची घटना 10 साल पुरानी है। मित्रो ,मैं आपको पहले बता चुका हूं। कि मैं प्राध्यापकों जोकि प्रतियोगी परीक्षा में पढ़ाता हूं। मैं जाति से ब्राह्मण हूं और गोत्र हमारा शांडिल्य है। संस्कृत की कादंबरी में ब्राह्मणों का जो वर्णन किया है। उसमें बताया गया है शांडिल्य गोत्र के ब्राह्मणों का कार्य ज्योतिष का कार्य था। हमारे पड दादा एक ज्योतिषी थे। ये बातें कहानी से संबंधित हैं। इसलिए मैं आपको बता रहा हूं। चलिए मित्रों अपने कहानी पर आते हैं।
( यह घटना 2010 की है। मैं कोचिंग क्लास में पढ़ा कर ऑफिस में आया था। ऑफिस में कोचिंग के संचालक सर ने मुझे केविन में बुला लिया। क्योंकि मैं उस कोचिंग में सबसे पुराना एंप्लॉय था। मैं और सर मिलकर शुरुआत में कोचिंग पढ़ाते थे। इसलिए वह मुझे छोटे भाई की तरह मानते थे। उसके बाद जैसे से कोचिंग बड़ी है स्टाफ बढ़ता है गया। लेकिन हमारे संबंध वैसे ही बने रहे। मैं उनके केबिन में गया।)
रमन सिंह—अरे हर्ष सर, आइए सर बैठिए कुछ बात करनी थी आपसे।
(कुर्सी पर बैठकर बुक्स टेबल पर रखते हुए मैंने कहा)
हर्षवर्धन— क्या बात है सर? कोई टेंशन है क्या?
रमन सिंह—नहीं सर, कोई टेंशन नहीं है केवल आपसे बात करनी है।
हर्षवर्धन—बोलिए सर!
रमन सिंह—सर जी क्या आप ज्योतिष में विश्वास करते हैं?
हर्षवर्धन—सर ज्योतिष में विश्वास करते हैं क्योंकि हमारे पडदादा तीन भाई थे। हमारे बाबा के पिताजी सरकारी नौकरी करते थे। बाकी के दोनों भाई ज्योतिष के कार्य करते हो। जिनमें से एक भाई की मृत्यु कुछ वर्ष पहले हुई है। जिनका नाम पूरे शहर में ज्योतिष के कारण जाना जाता है। ज्योतिष तो हमारा कार्य है। इसलिए सर हम विश्वास करते हैं।
रमनसिंह–सर हमारी कोचिंग में शुक्ला नाम का विद्यार्थी आता है। हां जो कि एक सिविल वकील है। (मित्रों हम वकीलों को RJS,ADj की तैयारी करवाते हैं इसलिए हमारे स्टूडेंट वकील हैं।)
हर्षवर्धन—तो क्या शुक्ला एक ज्योतिषी है?
रमन सिंह–नहीं, उनके पिताजी एक ज्योतिषी हैं। वह कोलकाता में रहते हैं। इस समय यहां पर आए हुए हैं। वह भारत के अच्छे ज्योतिषीयो में आते हैं। अच्छा हर्ष जी एक बात बताइए। आपके दादा जी ने आपके बारे में कुछ नहीं बताया। जो सही निकला हो।
हर्षवर्धन–मेरी मजाक के स्वभाव को देखकर वह कहते थे। कि ज़िन्दगी भी तुम्हारे साथ मजाक ही करेगी । पहले तो मुझे मजाक लगती थी। लेकिन अब सही लगती हैं। क्योंकि जिंदगी ने फुटबॉल बना रखा है।
रमनसिंह– (हंसते हुए) चलो एक बार उनसे मिलकर आते हैं। क्या आप मेरे साथ चलेंगे? जल्दी आ जाएंगे। अभी चलते हैं बस।
हर्षवर्धन—चलो चलते हैं। वैसे तो मैं नहीं जाता लेकिन ज्योतिषी हैं इसलिए एक बार मिलकर आते हैं।
(मैं और रमन सिंह सर दोनों कार से शुक्ला जी के घर पहुंचे। शुक्ला हमें देख कर बहुत खुश हुआ। जिन ज्योतिषी से मिलने के लिए अपॉइंटमेंट की आवश्यकता होती है। उनसे हम बड़ी फुर्सत में बात कर रहे थे। सर ने अपनी जन्म कुंडली दिखा ली। फिर पंडित जी ने मुझसे कहा)
पंडित जी—हर्ष जी आपको कुछ भी नहीं पूछना क्या?
हर्षवर्धन–अरे सर, जीवन फुटबॉल बनी हुई है । हजारों ज्योतिषीयो से पूछ लिया। अब मैं जो चल रहा है उसी में खुश रहने की कोशिश कर रहा हूं। (उस समय मैं बहुत परेशान हो चुका था और मैंने सब भगवान पर छोड़ दिया था और मस्ती से जीवन जी रहा था। इसलिए मुझे भविष्य की इतनी चिंता नहीं थी। फिर मेरे दिमाग में एक प्रश्न है और मैंने पूछा) पंडित जी आपकी सारी उम्र भविष्य बताने में चली गई आपके अनुभव में कोई ऐसी घटना है जो आप हमें बता सके। जो आपको विचित्र लगती है।
(मैंने यह बात उनसे कहीं। वह सुनकर मुस्कुरा गये। और कुछ सोचकर वह बोले।)
पंडित जी–बेटा मैं आपको अपने जीवन के दो अनुभवों के बारे में बताता हूं। एक बार एक बहुत गरीब लड़का अपनी जन्म कुंडली लेकर मेरे पास आया। यह घटना 35 साल पुरानी है। उसके कपड़े भी इतने अच्छे नहीं थे। वह जाति से बनिया था। वह लड़का मेरे पास आया और मुझसे बोला कि गुरु जी आप मेरी जन्म कुंडली देख लेंगे। लेकिन आप मुझे पहले बता दीजिए कि कितने पैसे लेंगे? मैंने कहा जो तुम्हारे पास जो हो वह दे देना और नहीं भी हो तो कोई बात नहीं। उसकी गरीबी की हालत को देखकर मुझको उस पर बहुत अधिक दया आई और मैंने उसको समय लेकर उसकी जन्मकुंडली देखी। जन्मकुंडली की गणना के अनुसार वह व्यक्ति बहुत धनवान होना चाहिए। लेकिन उसका हाल बेहाल था मैंने उससे पूछा। यह जन्मपत्री किसकी है? उसका नाम रमेश था।
रमेश—गुरु जी यह जन्मकुंडली मेरी है। मेरा नाम रमेश है और उस पर लिख रहा है।
(मेरा दिमाग ठनक गया मैंने दोबारा उसकी गणना करना प्रारंभ किया। तो उसमें शादी के बाद उसका अत्यधिक धनवान होना निश्चित लिखा हुआ था। मैंने उससे कहा।)
पंडित जी–बेटा तुम्हारे जीवन में अत्यधिक धनवान का योग है ।तुम बहुत बड़े आदमी बनोगे। शादी के बाद तो तुम बहुत बड़े आदमी बन जाओगे।
(यह बात सुनकर मैं भी हंसने लग गया। अरे पंडित जी यह बात तो मेरे पडदादाजी ने भी कही थीं। शादी को 2 साल हो गए लेकिन कुछ नहीं हुआ धनवान तक की कोई हल्की फुल्की छोटी घटना भी नहीं है कहीं यह बिजनेस टेक्ट तो नहीं। यह सुनकर वह थोड़े से नाराज से होने लगे। मैं समझ गया। मैंने तुरंत बात को संभाला। और कहा)
हर्षवर्धन—पंडित जी मैं तो मजाक कर रहा था। आप इसका बुरा मत मानना। मैं ज्योतिष में अत्यधिक विश्वास रखता हूं।
पंडित जी–तुम्हारी तरह वह लड़का हंसने लगा और उसने कहा पंडित जी मैं बनिया का पुत्र हूं मैं दुनिया को बेवकूफ बनाता हूं मुझे कोई आसानी से बेवकूफ नहीं बना सकता। आप मेरे से पैसे ले लेना ।लेकिन मुझे ढंग से बताइए। मुझे भी गुस्सा आ गया। मैंने कहा कि मैं ज्योतिष करना छोड़ दूंगा यदि इस जन्म कुंडली में जो भी व्यक्ति है उसका धनवान का योग ना हो तो। अगर यह जन्मकुंडली तुम्हारी है ।तो मेरा कहा हुआ बचन भी सत्य हैं। जब तुम्हारे पास पैसे आ जाए तब मुझे तुम दे देना। मेरी बात सत्य निकलेगी।
(मेरी गंभीरता को देखते हुए उसने बड़े सहज भाव से मुझसे कहा)
रमेश–आप अपनी दक्षिणा रख लीजिए पंडित जी। यदि आपकी बात सत्य निकलती है तो मैं भी आपसे वादा करता हूं कि आप भी जीवन भर याद रखेंगे कि मैं आपको ऐसी दक्षिणा दूंगा। मेरा भी यह वचन है।
(इस घटना के 8 साल बाद वह लड़का अपने परिवार के साथ मेरे पास आया। मैं इस बात को भूल चुका था। सबसे पहले उसका मैनेजर आया और उसने मुझसे पूछा।)
मैनेजर–यह पंडित जी शुक्ला जी का घर है।
पंडित जी—हां बेटा मैं ही शुक्ला जी हूं।
मैनेजर—पंडित जी मैं अपने सर को बुला कर लाता हूं। वह कार में बैठे हुए हैं।
(एक सुंदर सा व्यक्ति शालीन तथा पैसे वाला चमकदार कपड़ों के साथ मेरे कक्ष में उसने प्रवेश किया और मेरे पैर छुए। मैंने उससे कहा)
पंडित जी—क्या हम पहली बार मिल रहे हैं? या पहले भी हम मिल चुके हैं।
रमेश—पंडित जी शायद आपने मुझे पहचाना नहीं। आज से 8 साल पहले मैं अपनी जन्म कुंडली आपसे दिखाने आया था। आपने कहा था कि मेरे धनवान होने के योग हैं। इस बात पर मेरी आपसे बहुत बहस हुई थी।
(उसके द्वारा याद कराने पर मुझे भी याद आ गया। मैंने उससे पूछा )
पंडित जी–कैसे तुम्हारे दिन बदल गए?
रमेश–पंडित जी आपकी बात पर विश्वास मुझे इसलिए नहीं हुआ। उस समय मेरे पिताजी तंबाकू गुटके की एक छोटी सी दुकान करते थे। और मैं छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा था। मैं जब फाइनल ईयर में था। तो एक सज्जन व्यक्ति अपनी कार से उतरे और उनका बैग रास्ते में गिर गया जो कि कॉलेज कैंपस में था। मैंने यह दूर से देख लिया। वह अपनी बैग के लिए बहुत परेशान हो रहे थे। मैंने उनका बैग उनको लौटा दिया। वह मुझसे बहुत खुश हुए। उन्होंने मेरी जाति पूछी। वह जाति से बनिया ही थे। उन्होंने मुझे खाने पर बुलाया। घर पर जाकर मुझे पता पड़ा उनकी बेटी भी मेरी कक्षा में पढ़ती थी। उसने भी मेरी बहुत प्रशंसा की। वह उनकी इकलौती लड़की थी। कुछ ही दिनों में उन्होंने मेरी सारी जानकारी जुटा ली। उन्होंने मुझे घर बुलाया और अपनी बेटी की शादी का प्रस्ताव मेरे सामने रखा। मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी हैसियत के बराबर नहीं हूं। मैं अत्यधिक गरीब हूं। उन्होंने कहा मेरा पैसा, मेरा व्यवसाय सब तुम्हारा है मैं तुम्हारी सारी स्थिति बदल दूंगा। वह मेरे पिता जी से मिलने गए। पिताजी से जब उन्होंने कहा कि लड़के की शादी हम होटल से करेंगे। वह जिद पर अड़ गए कि शादी घर से ही करूंगा। घर के नाम पर हमारे पास एक छोटा सा रूम था। उन्होंने अपनी कॉलोनी में हमें एक घर दिलाया। उन्होंने बेंगलुरु के आसपास के एरिया की पूरी बागडोर मुझे दे दी और मुझे वहां का चेयरमैन बना दिया। कंपनी का एक भाग का मालिक मैं हो गया। उन्होंने शादी बड़ी धूमधाम से की। एक समय ऐसा आया उनकी कंपनी में लॉस चल रहा था। मैं जो बेंगलुरु की कंपनी का मालिक था। हमारी कंपनी ने उनकी कंपनी की सहायता की। लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं जताया कि वास्तविक रूप में मालिक वही थे। उल्टा मुझे धन्यवाद दिया। मैंने कहा यह तो सब आपका ही था। बोले बेटा बेटी और यह कंपनी दोनों ही मैंने कन्यादान के रूप में तुम्हे दे दी है। वास्तविकता में मेरे ससुर साहब मेरे लिए भगवान की तरह साबित हुए। फिर पंडित जी मुझे आपकी याद आई कि वास्तविकता में आपने सही कहा था। किस्मत में जो लिखा होता है वह जरूर मिलता है। इसलिए मैं आपकी दक्षिणा देने आया हूं। बताइए आपको क्या चाहिए।
पंडित जी—वह मुझे एक कार गिफ्ट में दे गया। बहुत कुछ चीजें मुझे देकर गया । 45 साल कि मेरी ज्योतिष की कार्यकाल में वह मुझे सबसे अच्छी दक्षिणा दी गई है जो कि मेरे लिए यादगार थी।
हर्षवर्धन—क्या पंडित जी कभी ऐसा भी होता है?
पंडित जी—हां बेटा, जब तुम्हें कोई चीज मिलनी होती है तो वह किसी न किसी माध्यम से तुम्हारे पास आ ही जाती है। अब दूसरी घटना सुनाता हूं। बेटा एक बड़े आदमी की शादी में मैं गया था। कई लोग मेरे से वहां पर हाथ दिखा रहे थे। तभी एक बहुत अधिक धनवान देखने वाला व्यक्ति मेरे पास आया। उसकी बातों में धन का घमंड झलक रहा था। उसका मेंने हाथ देखा। मैंने उससे कहा कि आप एक बार मेरे ऑफिस में आना तथा अपनी जन्म कुंडली साथ में लाना मुझे कुछ आपके हाथ में कोई प्रॉब्लम लगती है। वह घमंड में चूर था। क्योंकि जब व्यक्ति के पास पैसा होता है तो वह नहीं बोलता उसका पैसा बोलता है। वह मुझ पर हंसा और उसने कहा चिंता मत करो पंडित जी यह पैसे रखो और मैं जब आऊंगा तब भी आपको दक्षिणा दूंगा। मैं उससे मना किया पैसे लेने से वह नहीं माना उसने जबर्दस्ती मुझे पैसे दे दिए। मुझे ऐसा नहीं लगा कि वह मेरे पास कभी आएगा। लेकिन मेरे अंदेशे के विपरीत एक दिन अपनी बड़ी गाड़ी में वह मेरे पास आया।
(सबसे पहले उसके मैनेजर ने मेरे ऑफिस में प्रवेश किया। उसने पूछा )
मैनेजर—-क्या यह शुक्ला जी का ऑफिस है ?
पंडित जी—हां जी मैं ही शुक्ला हूं।
मैनेजर–हमारे साहब आपसे मिलना चाहते हैं।
पंडित जी—अच्छा बोला लीजिए उनको।
(वह वही धनवान व्यक्ति था जो मुझे शादी समारोह में मिला था उसका नाम प्रदीप था। मुझे देख कर वह बोला)
प्रदीप—देखिए पंडित जी मैंने आपसे कहा था कि मैं जरूर आऊंगा और मैं आ गया। क्योंकि प्रदीप सिंह जो वादा करता है वह जरूर निभाता है। तथा जन्म कुंडली भी साथ में लाया हूं।
पंडित जी—आइए बैठिए। लाइए अपनी जन्म कुंडली मुझे दिखाइए। जैसे ही मैंने उसकी जन्मकुंडली देखी। मुझे सदमा लगा।
हर्षवर्धन—ऐसा क्या लिखा हुआ था उस जन्म कुंडली में?
पंडित जी–हां यही बात बता रहा हूं आपको। उसकी जन्मकुंडली की गणना जब मैंने की। तो उसमें 6 महीने बाद एक साथ उसकी तबाही की कहानी लिखी हुई थी। मैं उसको कुछ संकेत देना चाहता था। लेकिन वह पैसे के घमंड के मद में चूर था। फिर भी मैंने उससे कहा
पंडित जी—प्रदीप जी आपको 6 महीने बाद थोड़ा संभल के रहना है। आपकी धन का नाश होना दिख रहा है।
प्रदीप—पंडित जी आप शायद मुझे जानते नहीं हैं। मेरे पास इतना पैसा है। यदि आने वाली सात पीढ़ी कोई भी काम ना करें तब भी यह खत्म नहीं होगा। मैं तो सोच रहा था कि शायद धन के लोभ में आप मुझे अच्छी-अच्छी बातें बताएंगे। लेकिन आप तो आगे के 6 महीने तक की व्यवस्था कर रहे हैं। लीजिए यह दक्षिणा और मैं चलता हूं।
(मैंने भी गुस्से में उससे कुछ नहीं लिया और उसके पैसे फेंक दिये । मैंने कहा सम्मान से बढ़कर मेरे लिए पैसा नहीं है। वह वहां से चला गया। मुझे भी बहुत गुस्सा आया। लेकिन मैं पैसे के लालच में झूठ नहीं बोल सकता था और मैं भी उसको भूल गया। लगभग 2 साल बाद एक सामान्य से दिखने वाला व्यक्ति मेरे ऑफिस में आया और मुझसे बोला)
प्रदीप—पंडित जी आपने मुझे पहचाना।
पंडित जी—नहीं, कृपया बैठिए है मैं आपको पहचान नहीं पा रहा हूं।
प्रदीप—पंडित जी मैं वही व्यक्ति हूं जो आपको शादी समारोह में मिला था। तथा आपके ऑफिस में भी आया था। आपने मेरी जन्म कुंडली देखी थी। तथा आपने कहा था कि 6 महीने बाद तुम्हारे धन का नाश होना शुरू हो जाएगा और मैंने नहीं माना था।
पंडित जी—हां हां मुझे याद आया। लेकिन तुम्हारी स्थिति ऐसे कैसे हो गई?
(वह बुरी तरह से रोने लग गया। मैंने उसके लिए पानी मंगाया। उसको गले लगाया और चुप किया फिर वह बोलो)
प्रदीप—पंडित जी उस समय मुझे आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था। मैंने सोच लिया था कि मैं कभी जीवन में आपके पास नहीं आऊंगा । लेकिन 6 महीने बाद मेरे बेटे जिनको बहुत अच्छा समझता था। उनके द्वारा किसी का मर्डर हो गया। और मुझे मालूम नहीं था। वह ड्रग्स का भी व्यापार करते थे। पुलिस ने उन को रंगे हाथों पकड़ लिया।पुलिस ने मेरी कंपनियों में भी जांच करना शुरू कर दिया। अखबारों में मेरी कंपनी का नाम आने के कारण लोग जो मेरे साथ व्यापार करते थे उन्होंने व्यापार करना छोड़ दिया। बेटों को और अपनी कंपनी को बचाते बचाते । मेरे पास जितना भी पैसा था सब ठिकाने लग गया। घर बार सब बिक गया। मैं अपने बेटों को भी नहीं बचा पाया। आज भी वह जेल में बंद है। आज मैं किसी दूसरे व्यक्ति के एक छोटी सी नौकरी करता हूं। मैं कभी पैसे वाला था यह मेरा सपना बनकर रह गया। यानी पुरानी घटनाएं मुझे सपने जैसी लगती हैं। पंडित जी आपने सही कहा था।
(इस प्रकार दोनों घटनाओं को बताने के बाद पंडित जी ने हमसे कहा)
पंडित जी–यह दोनों घटनाएं एकदम सत्य हैं। अपने पूरे जीवन में से मैंने दो यह सत्य घटना है जो आपको बताएंगे। उनका सार यह है कि मनुष्य को किसी ना किसी घमंड का नशा है। किसी को अपनी जवानी का, किसी को अपनी ताकत का, किसी को अपने पैसे का, किसी को अपने रूप का, किसी को अपने खानदान का जबकि यह सारी चीजें क्षणभंगुर है। भविष्य के गर्भ में पता नहीं क्या छुपा हुआ है मनुष्य नहीं जानता है फिर वह क्यों तो चिंता करता है और क्यों घमंड करता है। ना तो चिंता करने की आवश्यकता है भविष्य में कुछ भी हो सकता है? और ना ही घमंड करने की आवश्यकता है क्योकि भविष्य में कुछ भी हो सकता है। इसलिए जब तक जियो मस्त रह जियो। खुद भी खुश रहो दूसरों को भी खुश रखो। जीवन में हमेशा सत्कर्म करते रहो। यह माया तो आनी और जानी है इसके लिए ना तो घमंड करो और ना चिंता करो।
हर्षवर्धन–बस पंडित जी की यह बात हमारे दिल को छू गई। और हमने सोच लिया जिंदगी मस्ती से जीयेंगे। खुद भी खुश रहेंगे और दूसरों को भी खुश रखेंगे। और पूरी कोशिश करेंगे के जीवन में सत्कर्म कर सकें।
मित्रों, यह दोनों घटनाएं बिल्कुल सत्य है। इसलिए जीवन में ज्यादा से ज्यादा खुश रहने की कोशिश कीजिए।

हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)

You may also like

Leave a Comment

True Facts News is renowned news Paper publisher in Jaipur, Rajasthan

Newsletter

Subscribe my Newsletter for new blog posts, tips & new photos. Let's stay updated!

Laest News

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by TrueFactsNews