Sunday, May 25, 2025
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नए दौर की अजब कहानी

by marmikdhara
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तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है,
और तू मेरे गांव को गँवार कहता है //

ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है //
तू चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है //

थक गया है हर शख़्स काम करते करते //
तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है।

गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास !!
तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है //

मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं //
तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है //

जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा,
तू उन माँ बाप को अब भार कहता है //

वो मिलने आते थे तो कलेजा साथ लाते थे,
तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है //

बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें //
तु अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है //

बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में //
पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है //

अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं //
तू इस नये दौर को संस्कार कहता है .//

हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)

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