पाठकों “जीवन जीने की कला”नामक शीर्षक के अंतर्गत एक कहानी लिख रहा हूं। यह कहानी किसी समस्या पर नहीं है। बस, जीवन में हुए कुछ बदलाव पर निर्भर है। इसके साथ मैं यह कहना चाहता हूं। हमारी कहानियों को प्रोत्साहित करने के लिए मार्मिक धारा न्यूज़पेपर आपका आभारी है।
मेरा बचपन का दोस्त जिसका नाम यशवर्धन है। वह कई साल बाद मुझे मिला। उसने मुझे अपने ऑफिस में बुलाया। जिस समय वह मुझसे मिला था उस समय मैं बहुत बिजी था।
समय निकाल कर मैं उसके ऑफिस पहुंचा। उसने मुझे एक फाइनेंस कंपनी का पता दिया। मैं वहां पहुंचा । ऑफिस के बाहर रिसेप्शनिस्ट से मैंने कहा,
लेखक—मैडम मुझे यशवर्धन से मिलना है।
रिसेप्शनिस्ट- सर ,वह इस कंपनी के मालिक हैं। आपने अपॉइंटमेंट लिया है।
लेखक—नहीं मैडम, उन्होने मुझे बुलाया था। मैंने अभी उनसे फोन किया था। उन्होने कहा था कि आप अंदर आ जाओ।
रिसेप्शनिस्ट—ठीक है सर मैं अभी फोन कर लेती हूं।
(तभी उन्होंने फोन किया और मुझसे कहा)
रिसेप्शनिस्ट—-सर, आप अंदर जा सकते हैं।
(लेखक ऑफिस के अंदर प्रवेश करता है)
यशवर्धन– आओ मेरे मित्र, बैठो केवल 5 मिनट रुको जब तक तुम चाय पियो।
(वह किसी से बात कर रहा था। उसने फोन से चाय का आदेश दिया और चाय आ गई। मेरी चाय पीते ही उसने सभी को फ्री कर दिया। फिर वह मुझसे बोला)
यशवर्धन— यार, तुझे देख कर बड़ी खुशी हुई। आज बहुत दिन बाद मैं खुश हुआ हूं वरना जीवन में तो बड़ी नीरसता आ गई है।
लेखक—यार, सब कुछ तो है फिर नीरसता किस बात की है?
यशवर्धन—यह सब कुछ नीरसता ही है। क्या कहूं और किससे कहूं? मेरी समस्या ऐसी है। कि मैं किसी से बात भी नहीं कर सकता हूं। इसलिए सबके साथ होते हुए भी अकेला हूं।
लेखक— यार पहले मिले थे तो तुम्हारा स्कूल व कोचिंग था। और आज एक कंपनी हो गई है। क्या बात है? प्रोफेशन बदल लिया क्या?
यशवर्धन—नहीं यार, आज भी स्कूल और कोचिंग है। मैं अभी भी अध्यापक ही हूं।
लेखक—फिर समस्या क्या है?
यशवर्धन—चलो तू मेरा मित्र है तुझे बतलाता हूं। मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूं। मेरे माता-पिता दोनों अध्यापक हैं।
लेखक—हां मुझे मालूम है।
यशवर्धन—यार, जयपुर में आया था कि सरकारी नौकरी लग जाए। लेकिन पढ़ाने की आदत जन्मजात थीं। तो पढ़ने के साथ-साथ पढ़ाने भी लग गया। कोचिंग में पढ़ाते पढ़ाते खुद की कोचिंग खोल ली। ऐसा नहीं कि कोचिंग तुरंत खुल गई। कई वर्षों तक लगातार संघर्ष चलता रहा। जीवन में इतनी असफलताएं मिली के आसपास के लोग एवं रिश्तेदार मेरी तुलना अब्राहिम लिंकन से करने लगे। लेकिन मेरी जिद ने मेरी कोचिंग चालू की। जिसने जैसे-जैसे व्यवसाय बताएं वह सभी व्यवसाय खोलकर मैंने अपने लाखों का नुकसान किया। कोचिंग के बाद स्कूल खोला तो लोगों ने कहा स्कूल बहुत छोटा है। कड़े संघर्ष के बाद स्कूल शुरू हुआ। बस मेरे दोस्त मैं चलता रहा और मैंने किसी की ओर ध्यान नहीं दिया।
मैंने असफलताओं का इतना दौर देखा है कि मैंने सोचा कि मैं कभी भी सफल नहीं हो पाऊंगा। मैं काफी मेहनत करता । लेकिन इस दुनिया को मेरी मेहनत का पता ही नहीं चलता था। कई किताबें लिखी लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली फिर परेशान होकर मैंने सोचा कि यदि यह प्रतियोगी परीक्षा की किताब सफल नहीं हुई तो मैं किताब लिखना बंद कर दूंगा। अचानक मेरी किताब सफल हो गई। लोगों ने मेरी किताब को बहुत अधिक पसंद किया। लोग मेरे नाम से जानते थे। मैं कहता कि मैं यशवर्धन हूं तो वे यह बात मानने को तैयार नहीं थे। वे समझते थे कि मैं झूठ बोल रहा हूं। फिर धीरे-धीरे मुझे पहचानने लगे। क्योंकि असफलताओं के लंबी दौर के बाद अचानक सफलता मिली थी हम इस लायक बने नहीं थे। हमें सफल व्यक्तियों जैसा एटीट्यूड नहीं था। फिर मेरी पत्नी ने मुझसे कहा, तुम्हारी किताब सफल हो चुकी है। इसलिए तुम्हें अब बड़े लोगों की तरह रहना चाहिए। तुम्हें अच्छा दिखना चाहिए। वह मेरे लिए अच्छे-अच्छे कपड़े लेकर आई लेकिन यार हमारी मां ने हमें सिखाया था कि नए कपड़े हमेशा शादी समारोह में ही पहने जाते हैं। इस आदत से उबर नहीं पा रहे हैं। दूसरी समस्या जैसे किसी पार्टी या किसी मीटिंग में जाता हूं। वहां नाश्ते में चाकू और कांटे का प्रयोग करना पड़े। बचपन से मुझे चाकू कांटे से खाना नहीं आता है। यदि पार्टी में इन चाकू और कांटों को जब मैं देखता हूं तो मैं उस तारीख का बार देखता हूं और उसी बार के अनुसार अपना व्रत बता देता हूं। क्योंकि चाकू कांटा देखकर मेरे हृदय की गति तेज हो जाती है।
तीसरा कहीं भी किसी समारोह में जाता हूं।”दो शब्द”बोलने के लिए लोग मुझसे आग्रह करते हैं। यार, मैं अध्यापक हूं। किसी विषय की जानकारी दे सकता हूं। लेकिन नेता नहीं कि तो सच्चा भाषण दे सकूं। इसलिए किसी समारोह में नहीं जाता हूं। कहीं लोग “दो शब्द” बोलने के लिए ना कह दें। तीसरा मेरी पत्नी कहती है कि तुम्हारे पास कितनी पार्टियों के निमंत्रण आते हैं? तुम जाते क्यों नहीं हो? और ना ही मुझे लेकर जाते हो? यार पार्टियों में एक से बढ़कर एक बड़े लोग आते हैं। तथा अमीर लोग आते जो कि जन्मजात हैं। उनसे मैं खुलकर बात नहीं कर सकता क्योंकि मैं अभी अभी पैसे वाला हुआ हूं। और वह जन्मजात पैसे वाले हैं। किसी को कुछ बुरा नहीं लग जाए इसलिए वहां चुप रहता हूं। तथा मेरे नाना जी जोकि ठाकुर जी के भक्त थे। सुबह 3:00 बजे जगते थे। और मैं भी उनके पास ही रहता था। इसलिए मुझे भी सुबह जल्दी उठने की आदत लग चुकी है। पार्टियों में जाने से जल्दी सुबह नहीं उठ पाता हूं। इस कारण से भी पार्टीयों में नहीं जाता हूं। बड़े लोगों से लिए भी नहीं खुल मिल पाता हूं कि मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूं और जो उच्च वर्गीय पसंद होती है वह मध्यम वर्ग में पाप मानी जाती हैं।
यार, मैंने बचपन में सुना था की बिजनेस में जब व्यक्ति ऊपर उठने का प्रयास करता है तब भी एक पीढ़ी का पता नहीं चलता है। अर्थात एक पीड़ी को कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। आज मुझे यह महसूस हो रहा है। क्योंकि व्यवसाय में आगे से आगे खर्चे रहते हैं। लोगों को सफलता दिखती है लेकिन वह खर्चे नहीं दिखते हैं।
कंपनी का मालिक होने के कारण किसी से खुल कर बोल नहीं सकता बस चुपचाप रहता हूं। केवल अपने बचपन के दोस्तों के साथ ही खुलकर मिल सकता हूं और बात कर सकता हूं। क्योंकि वही दोस्त होते हैं जो केवल हम से प्रेम करते हैं। किसी प्रोफेशन के साथ मिले मित्रों का प्रोफेशन के अनुसार व्यवहार करना पड़ता है।
बस यार इसी एटीट्यूड को निभाते निभाते परेशान हो गया हूं।
इसलिए पाठकों जीवन में खुशी किसी पद प्रतिष्ठा में नहीं है। केवल मित्रों के साथ में ही है। क्योंकि सच्ची मित्रता में कोई स्वार्थ नहीं होता है।इसलिए समय-समय पर अपने सकारात्मक प्रवृत्ति वाले मित्रों से मिलना चाहिए।
हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)