Sunday, May 4, 2025
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प्रभु की महिमा अपरंपार है।

by marmikdhara
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वृन्दावन में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह बाँकेबिहारी से असीम प्यार करता था। वह बाँकेबिहारी का इतना दीवाना था कि सुबह शाम जब तक वह मन्दिर ना जाए उसे किसी भी काम में मन नहीं लगता था। मन्दिर में जब भी भंडारा होता वह प्रमुख रूप से भाग लेता।
एक दिन ब्राह्मण की बेटी की शादी तय हो गई और जिस दिन ब्राह्मण की बेटी की शादी तय हुई उसी दिन ब्राह्मण की बाँकेबिहारी के मन्दिर में भी ड्यूटी लग गई। ब्राह्मण परेशान हो गया कि, वह करे तो क्या करे। बेटी की शादी भी जरूरी है, और बाँकेबिहारी की आज्ञा भी ठुकरा नहीं सकता। ब्राह्मण ने सोचा कि अगर यह बात वह अपनी पत्नी से बताएगा, तो उसकी पत्नी नाराज हो जाएगी। वह कहेगी कि, कोई क्या अपनी बेटी की शादी भी छोड़ता है। एक दिन अगर तुम भंडारे में नहीं जाओगे, तो भंडारा रुक नहीं जाएगा। कोई और संभाल लेगा लेकिन बेटी की शादी दोबारा तो नहीं होगी।
ब्राह्मण परेशान हो गया था वह जानता था कि कुछ भी हो जाएगा, उसकी पत्नी उसे भंडारे में जाने नहीं देगी। लेकिन उसका मन नहीं मान रहा था, वह अपने बाँकेबिहारी से नजरे नहीं चुरा सकता था। बेटी की शादी के दिन ब्राह्मण अपने घर में बिना बताए चुपचाप समय से पहले ही मन्दिर पहुँच चुका था।
मन्दिर में जाकर प्यार से सब को भंडारा खिलाया और शाम होते ही जल्दी से घर वापस पहुँचा क्योंकि बेटी की शादी में भी पहुँचना था लेकिन ब्राह्मण को पहुँचते-पहुँचते देर हो चुकी थी और बिटिया की शादी हो कर बिटिया की विदाई भी हो चुकी थी।
वह घर पहुँचा तो उसकी पत्नी उसे बोली आओ चाय पी लो बहुत थक चुके होंगे। सोचने लगा कि घर वाले कोई भी उसे डांट नहीं रहे हैं, और ना ही परिवार के कोई भी सदस्य उससे कोई सवाल कर रहा है कि वह शादी में नहीं था। फिर भी पत्नी सही से उसे प्यार से बात कर रही थी।
ब्राह्मण ने भी सोचा छोड़ो क्या गड़े मुर्दे उखाड़ना है जो हो गया सो हो गया। सब प्रभु की इच्छा है, पत्नी अगर प्यार से बात कर रही है इससे अच्छी बात क्या है।
कुछ दिनों के बाद बेटी की शादी में जो फोटोग्राफी हुई थी फोटोग्राफर शादी का एल्बम घर पर दे गया। ब्राह्मण सोचा इस शादी में तो शरीक हुआ नहीं था चलो एल्बम देख लेता हूँ बेटी की शादी कैसी हुई थी। मगर यह क्या वह तो देख रहा है इस शादी में हर जगह उसकी भी तस्वीर है। ब्राह्मण फूट-फूट कर रोने लगा और बाँकेबिहारी के मन ही मन याद करने लगा और कहने लगा प्रभु तेरी यह कैसी कृपा है।
अगले दिन बाँकेबिहारी के मन्दिर गया और मन्दिर में जाकर खूब रोया और बाँकेबिहारी से कहने लगा चाहे कुछ भी हो जाए अब मैं तुम्हारा नियमित सेवा करता रहूँगा। मैं मान गया कि जो भगवान में भक्ति करता है भगवान उसे कभी भी अकेला नहीं छोड़ते हैं बल्कि हर जगह बाँकेबिहारी खड़े हो जाते हैं।

भानु प्रकाश शर्मा (मार्मिक धारा)
हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)

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