‘ शंकर ‘ का अर्थ है – कल्याण करने वाला | अत: भगवान शंकर का काम केवल दूसरों का कल्याण करना है | जैसे संसार में लोग अन्न क्षेत्र खोलते हैं , ऐसे ही भगवान शंकर ने काशी में मुक्ति का क्षेत्र खोल रखा है | शास्त्र में आता है – ‘ काशीमरनान्मुक्ति: ‘ | काशी को वाराणसी भी कहते हैं | ‘वरुना ‘ और ‘असी ‘ दोनों नदियाँ गंगाजी में आकर मिलती हैं , उनके बीच का क्षेत्र ‘ वाराणसी ‘ कहलाता है | इस क्षेत्र में मरने वाले की मुक्ति हो जाती है | ऐसी मान्यता है की काशी में मरने वालों के दायें कान में भगवान शंकर तारक मन्त्र – ‘ राम ‘ नाम सुनाते हैं , जिसको सुनने से उनकी मुक्ति हो जाती है | अध्यात्म – रामायण में शंकरजी कहते हैं – ‘ हे प्रभो ! आपके नामोच्चारण से कृतार्थ होकर मैं दिन – रात पार्वती के साथ काशी में रहता हूँ और वहाँ मरणासन्न मनुष्यों को उनके मोक्ष के लिए आपके तारक – मन्त्र राम नाम का उपदेश देता हूँ |’
गोस्वामीजी कहते हैं -” महामंत्र जोई जपत महेशु , काशी मुकुति हेतु उपदेशु [ मानस ]” | भगवान शंकर का राम नाम पर बहुत स्नेह है | राख और मसान – दोनों के पहले अक्षर लेने से ‘ राम ‘ हो जाता है , इसलिए शंकरजी मुर्दे की राख अपने शरीर में लगाकर श्मशान में रहना पसंद करते हैं | वे केवल दुनिया के कल्याण के लिए ही राम नाम का जप करते हैं , अपने लिए नहीं | शंकर के हृदय में विष्णु का और विष्णु के हृदय में शंकर का बहुत अधिक स्नेह है | शिव तामस मूर्ति है और विष्णु सत्त्वमूर्ति हैं , पर एक – दूसरे का ध्यान करने से शिव श्वेतवर्ण के और विष्णु श्यामवर्ण के हो गए | वैष्णवों का तिलक [ उर्ध्वपुन्द्र ] त्रिशूल का रूप है और शैवों का तिलक [ त्रिपुंड ] धनुष का रूप है | अत: शिव और विष्णु में भेदबुद्धि नहीं होनी चाहिए – अर्थात हरी और हर दोनों एक ही हैं , पर निश्चय के भेद से दोनों भिन्न की तरह दीखते हैं |
भगवान शंकर रामजी के सेवक , स्वामी , और सखा – तीनों ही हैं | रामजी की सेवा करने के लिए शंकर ने हनुमानजी का रूप धारण किया | यह रूप इसलिए धारण किया की अपने स्वामी की सेवा तो करूँ , पर उनसे चाहूँ कुछ भी नहीं , क्योंकि वानर को रोटी , कपड़ा , मकान आदि कुछ नहीं चाहिए , वह अपना प्रबंध स्वयम कर लेता है | रामजी ने पहले रामेश्वर शिवलिंग का पूजन किया , फिर लंका पर चढाई की | अत: भगवान शंकर रामजी के स्वामी भी हैं | रामजी कहते हैं – ‘ शंकर प्रिय मम द्रोही शिव द्रोही मम दास | ते नर करहीं कलप भरी घोर नरक महूँ वास ||’ अत: भगवान शंकर रामजी के सखा भी हैं |
भगवान शंकर आशुतोष [ शीघ्र प्रसन्न होने वाले ] हैं | वे थोड़ी सी उपासना करने से ही प्रसन्न हो जाते हैं | एक बार एक बधिक शिवरात्रि [ संयोग वश ] को मंदिर में , छत्र चुराने , शिवलिंग पर ही चढ़ गया | इसने अपने -आप को ही मेरे अर्पण कर दिया – ऐसा मानकर भगवान शंकर उसके सामने प्रकट हो गए | भगवान शंकर से वरदान मांगना हो तो भक्त नरसी की तरह मांगना चाहिए , नहीं तो ठगे जायेंगे | जब शंकरजी ने नरसीजी को वर मांगने को कहा , तो नरसीजी ने कहा की जो चीज आपको सबसे अधिक प्रिय लगती हो , वही दीजिए | शंकरजी ने कहा की मेरे को कृष्ण सबसे अधिक प्रिय लगते हैं , अत: मैं तुम्हें उनके ही पास ले चलता हूँ , ऐसा कहकर भगवान शंकर उनको गोलोक ले गए | तात्पर्य यह है की शंकर से वरदान मांगने में अपनी बुद्धि नहीं लगानी चाहिए | केवल ‘ ओम नम: शिवाय ‘ का जाप करने से साधक को दर्शन , मुक्ति , ज्ञान दे देते हैं |
भानु प्रकाश शर्मा (मार्मिक धारा)
हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)