10 मई भरतपुर, वैश्विक महामारी कोरोना हर तरीके से कमर तोड़ रखी है। तथा महामारी का यह सबसे भयानक स्थिति है। फिर भी कुछ निजी हॉस्पिटल मानवता को छोड़कर डकैती पर उतर चुके हैं। प्रशासन को उपकृत कर वह खुले में डकैती कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में इंसानों को जीवन बचाना बड़ा मुश्किल हो रहा है। सरकार सो रही हैं। ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कोई भी एक्शन नहीं लिया जा रहा। भरतपुर में दो मंत्री होने के बावजूद जनता की सुध लेने वाला कोई नहीं है। चिकित्सा मंत्री विधान सभा क्षेत्र होने के बावजूद सभी अखबारों में फ्रंट पेज पर जिंदल हॉस्पिटल के कारनामों को बताया जा रहा है। फिर भी उसके खिलाफ कोई भी एक्शन नहीं लिया जा रहा है।
अखबारों में छपने के बाद 7 मई को प्रशासन ने जिंदल हॉस्पिटल को मई का किराया मांगा। जबकि वेंटिलेटर अप्रैल माह में दिए गए थे। इतनी मेहरबानी का कारण अधिकारियों के परिजनों का उपचार भी बताया जा रहा है। सूत्रों का दावा है कि इस उपकार के बदले सरकारी वेंटिलेटर निजी सेवा में समर्पित हैं। 7 मई को प्रशासन ने जो पत्र लिखा उसमें एक वेंटिलेटर का किराया 2000/प्रति माह आ गया है। जो केवल मई महीने का मांगा है। जबकि वेटिलेटर अप्रैल माह में दे दी गये थे। जनता से 1 दिन का वेंटिलेटर का चार्ज 35000 से 38000 रूपए प्रति दिन के हिसाब से लिया जा रहा है। तथा 7 मई के बाद 2000 रूपए और बढ़ा दिए गए हैं। अधिकारियों व सरकारों ने आंखें मूंद रखीं हैं।
शहर निवासी आयुषी बंसल ने जिंदल हॉस्पिटल की ओर से ली जा रही अधिक वसूली की शिकायत जिला कलेक्टर हिमांशु गुप्ता को मेल से भेजी। इसमें आरोप लगाया कि जिंदल अस्पताल महामारी में भी अत्यधिक लाभ उठा रहा है। उन्होंने मेल में बताया कि उनकी मां पिछले 8 दिनों से अस्पताल में भर्ती हैं। राजस्थान सरकार ने निजी अस्पतालों में कोविड-19 के उपचार के लिए वेटिलेटर समर्थन के बिना आईसीयू बिस्तर के लिए 8250 प्रतिदिन (सब कुछ सहित) तय किया है। लेकिन हम से प्रतिदिन लगभग 20,000 चार्ज किए जा रहे हैं। आईआरडीएआई के दिशा निर्देशों और सेवा अनुबंध समझौते (एस एल ए) का उल्लंघन करते हुए मेरी बीमा पॉलिसी में कैशलेस सूची (आदित्य बिरला हेल्थ इंश्योरेंस कैशलैस लिस्ट से नीचे सूचीबद्ध अस्पताल का उल्लेख करते हुए) में उल्लेख किए जाने के बावजूद कैशलेस उपचार से इंकार कर रहे हैं। असहाए होने और आपातकाल की स्थिति में हमने 45000 रूपए जमा किए हैं। नियमित अंतराल पर निर्धारित राशि जमा करवाते रहे ताकि उनके परीक्षण बंद न कर दिए जाएं। उन्होंने 1,48,000 रूपए का बिल दिया गया है। अस्पताल लगातार प्रतिदिन कीमतों में वृद्धि कर रहा है। ऐसी स्थिति में जनता का जीना दुश्वार हो रहा है। लेकिन इसको कोई नहीं सुन रहा। ऐसे अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए ऐसा मेरा सरकार से अनुरोध है।
उपनेता प्रतिपक्ष विधानसभा राजेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा,”पीएम केयर रिलीफ फंड से आई वेंटीलेटर को निजी अस्पताल को देकर उसे लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई है। यह सब किसके इशारे पर हुआ है और कौन इसमें शामिल रहा है? इसकी जांच कराकर उन्हें निलंबित किया जाना चाहिए। सीएम को खुद इस मामले में दखल देना चाहिए। कोरोना काल में लोगों की मदद करनी चाहिए।”
सरकारी अस्पताल में फुल बेड की दुहाई देकर लोगों को भर्ती नहीं किया जा रहा हैं।
अब बताईए ऐसी स्थिति में ऐसी सरकारों व ऐसे अस्पतालों तथा अधिकारियों से क्या उम्मीद की जा सकती है?
हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)