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मेरी अभिलाषा

एक स्वरचित कविता , अपने ब्राह्मण समाज को उन्नति के शिखर तक प्रेरित करने हेतु।

by marmikdhara
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चाह नहीं मैं फूलों से लादा जाऊं,
चाह नहीं मैं लाखों में गिनती पाऊं।
चाह नहीं अखबारों में छापा जाऊं,
चाह नहीं सम्मान प्रत्र भी पाजाऊं।
🌹चाहत केवल इतनी सी है,
ब्राह्मण से ब्राह्मण जुदा नहीं,
मैं गर्व से इतना कह पाऊं।
ब्राह्मण एकता की चाहत में,
सर्वस्य अपना मैं लुटा पाऊं।
चाह नहीं,,,
🌹बच्चा बच्चा ब्राह्मण का
जब साथ चले,
जब जब गौरवगाथा का
अभियान चले।
फूलों की वर्षा कर देना
उन पर,
इतना तुमको मैं बतलाऊं।
चाह नहीं,,,
🌹कदम कदम पर
जय जय ब्राह्मण,
विश्व में तेरी शान बढ़े।
शौर्यगाथा , गौरवगाथा का
फिर से नया इतिहास पढ़ें ,
मैं भी तेरी जय जय गाऊं। चाह नहीं,,,,
🌹परचम तेरी बुद्धि का दुनिया बारंबार पढ़ें,
विश्व विजेता बन कर उभरे
खुशियों का अंबार चढ़े।
चंद लाइनें ब्राह्मण पर मैं भी
लिख जाऊं,,,चाह नहीं,,,
🌹एक परशुराम के बदले
लाखों परशुराम बने,
धर्म -ध्वजा के पालनहारों
आओ मिलकर साथ चले।
तो मैं भी धन्य धन्य हो जाऊं,,, चाह नहीं,,,,,,,
🌹 अंतिम पथ पर जाऊं
जब मैं
एक शब्द दोहरा देना ,
“राम” का नाम तो सदां सत्य था!
ब्राह्मण कभी कहां “असत्य” था?
इतना केवल मैं सुन पाऊं,,
चाह नहीं

 

रमेश चन्द्र शर्मा 
लालसोट, दौसा-राजस्थान

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