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राजनीतिज्ञ बनने की योग्यता

पाठकों यह एक हास्य व्यंग है।

by marmikdhara
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पाठकों यह  पूर्ण रूप से काल्पनिक है। इसका वास्तविक जीवन से कोई लेना देना नहीं है। मेरा नाम हर्षवर्धन शर्मा है। मैं पेशे से एक प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कराने वाला प्राध्यापक हूं। मित्रों, मैं इस व्यवसाय में 14 वर्ष से कार्यरत हूं। मेरे पास हजारों माता-पिता अपने बच्चों के भविष्य के बारे में अर्थात क्या कैरियर चुने इसकी सलाह लेने आते हैं।एक बार मेरे पास एक विचित्र व्यवसाय की जानकारी लेने एक व्यक्ति मेरे पास आए और बोले। व्यक्ति— मेरा नाम विमल है, मैं एक शोरूम का मालिक हूं। हर्षवर्धन— बैठिए, बताइए कैसे आना हुआ। विमल— सर मैं अपने बेटे को सबसे प्रभावशाली व बलशाली बनाना चाहता हूं। मैं उसे कौन से व्यवसाय में डालें? हर्षवर्धन—- सर, मेरी नजर में ऐसा कोई व्यवसाय नहीं है। सारे व्यवसाय ही प्रभावशाली है। विमल—( नजर झुकाते हुए) सर, आप समझ नहीं रहे हैं। हर्षवर्धन— अगर मैं नहीं समझ रहा हूं तो कृपया आप ही बता दीजिए। विमल— सर ,मैं अपने बच्चे को राजनीतिज्ञ बनाना चाहता हूं। वह MLAबने या M.P.बने। मैं आपसे पूछने आया हूं कि उसकी क्या योग्यता और गुण होते हैं? मैं उसकी तैयारी शुरू से ही कराना चाहता हूं। कृपया बताएं अभी मेरा बच्चा 12 साल का है। मुझे उसे कैसे तैयारी करानी चाहिए? हर्षवर्धन—- मुझे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। मेरे दूर दूर तक कोई राजनीतिक भी नहीं है। भला, मैं आपको जानकारी कैसे दे सकता हूं? इसलिए कृपया आप किसी दूसरे के पास जाकर इसकी जानकारी प्राप्त करें। विमल—सर, मैं आपके पास बड़ी आशा से आया हूं कृपया मुझे निराश ना करें। बहुत लोगों से आपकी तारीफ सुनी है। मैं बहुत परेशान हो गया हूं कृपया मेरी मदद करें। (उसने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते शब्दों में कहा ) हर्षवर्धन—-(कुछ सोच कर) मैंने कहा–देखिए! मेरा एक विद्यार्थी रह चुका है। आज वह MLA है। शायद वह आपकी मदद कर दे। मैं आपको उससे मिला दूंगा। विमल — (विमल के चेहरे पर प्रसन्नता आ गई और वह खुश होकर बोला)—मैं आपका एहसान जीवन भर मानूंगा। कृपया मेरी मदद कर दें। (मैं जिस छात्र की बात कर रहा था वह छात्र मेरे पास जब पढ़ने आता था जब मैं स्वयं की पढ़ाई कर रहा था। उसके पिताजी के अनुग्रह के कारण मैं उसे दसवीं क्लास की तैयारी करवाता था। आज वह एमएलए हैं। विमल जी जो कि बहुत अधिक धनी थे। मैं उनकी महंगी कार में बैठकर उनके साथ अपने छात्र के निवास स्थान की ओर चल दिये। मेरे छात्र का नाम रजत था। हम उसके विधायक आवास पर पहुंचे तो वहां बहुत अधिक भीड़ थी। उसने हमें देखा और वह भीड़ के बावजूद मेरे पास आकर मेरे पैर छूकर मुझसे बोला रजत— कैसे आना हुआ? गुरुजी, कोई समस्या तो नहीं है। हर्षवर्धन— मैंने कहा मुझे कुछ जानकारी लेनी है। तुम्हारा कुछ समय चाहिए। रजत— सर, समय के लिए आपको थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा। मैं जल्दी से इस भीड़ को निपटा देता हूं जब तक आप चाय नाश्ता कर लीजिए। हर्षवर्धन—कोई बात नहीं हम इंतजार कर लेंगे। (लगभग 45 मिनट में सारी भीड़ को निपटा कर वह हमारे पास आया और वह बोला-) रजत— सॉरी सर, आपको मैंने इंतजार कराया अब बताइए आप क्या पूछना चाहते हैं? हर्षवर्धन— रजत एक विचित्र समस्या है। यह जो सज्जन है। इनका एक पुत्र है। वह उसे एक अच्छा राजनीतिज्ञ बनाना चाहते हैं। इनका नाम विमल जी है। रजत—(वह हंसा और बोला)—सर, मैं आपको क्या बताऊं आप तो सब जानते हैं। हर्षवर्धन—नहीं, मैं नहीं जानता इसलिए तुम्हारे पास लाया हूं। रजत—सर, इस व्यवसाय की बड़ी अजीब योग्यता है। आप मेरे गुरु हैं मैं आपके सामने नहीं बता सकता हूं। हर्षवर्धन—रजत थोड़ी देर के लिए तुम यह भूल जाओ कि मैं तुम्हारा गुरु हूं और एक निडर राजनेता की तरह खुल कर कहो। विमल—-(गिड़गिड़ाते हुए)MLA साहब मैं बड़ा दुखी हूं। कोई इसकी जानकारी नहीं दे रहा है। कृपया मुझे बता दीजिए। रजत— (कुछ सोच कर)—सर और आपके अनुरोध पर बता रहा हूं।मैं अपनी सफलता की दास्तान से आप को समझाने की कोशिश करूंगा। सर, आप जानते हैं कि दसवीं तक मैं पढ़ने में बहुत होशियार था। दसवीं में अच्छे नंबर होने के कारण 11वीं में मैंने मैंथ साइंस लेकर अच्छे अंक प्राप्त किए। 12वीं में भी अच्छे अंक प्राप्त करें। 12वीं के बाद जैसे ही मैंने बीटेक करने के लिए कॉलेज में दाखिला लिया हमारा राजनीतिक सफर शुरू हो गया। मैं बहुत सीधा था दुनियादारी के बारे में कुछ नहीं जानता था । कॉलेज में बहुत अधिक विद्वान दोस्त मिले। पढ़ाई को छोड़कर, उन्होंने मुझे सब कुछ सिखा दिया और मैं उन विद्वान दोस्तों का एक अच्छा शिष्य बन कर सब कुछ सीखता चला गया। 12वीं क्लास तक मेरा शरीर कमजोर था। मित्रों के ज्ञान द्वारा व उनकी प्रेरणा से मैंने अपने शरीर को बलिष्ठ बनाने में पूरा ध्यान दिया। बलिष्ठ शरीर होने के बाद मित्रों ने मुझे कॉलेज में दादागिरी करना सिखा दिया।दादागिरी को बढ़ाने के लिए मुझे अपने साथियों के साथ पिटना और पीटना दोनों ही अच्छा लगने लगा। कॉलेज राजनीति में मेरी डिमांड (मांग) बढ़ने लगी और धीरे-धीरे में नशे की सभी चीजों का सेवन छात्र राजनीतिज्ञों के धन से करने लगा। जब मैं इन सभी गतिविधियों में रहने लगा तो प्रैक्टिकल के नंबर तो अच्छे ही आते थे लेकिन थ्योरी के नंबर हमेशा कम आते थे । समय-समय पर जेल यात्रा भी एक या 2 दिन की हो जाती थी और दुनिया जिन गतिविधियों को बुरी कहती है मैं उन सभी गतिविधियों को बड़ी कुशलता से पूर्ण कर चुका था। कॉलेज की लड़ाई-झगड़े में मेरी भूमिका बड़े अच्छे स्तर पर होती थी। कई बार मेरा सिर फूट गया कई बार मैंने सिर फोड़ दिया। कक्षा चाहे हम पार नहीं कर पा रहे थे लेकिन राजनीति के सभी चरण हम पूरे कर चुके थे। इस प्रकार में सर्वगुण संपन्न हो चुका था अर्थात बुराइयों की कोई कमी नहीं थी। सर्वप्रथम मैंने कॉलेज अध्यक्ष का चुनाव बड़ी कुशलता से लड़ा था तथा जीता। इसके बाद चंद वर्षों में मैं हिस्ट्रीशीटर हो गया। हिस्ट्रीशीटर होने के बाद पुलिस थाने में जाना आना आम हो गया था। जमानत पर रिहा होकर जब हम बाहर आए तो हमारी उम्र 35 साल थी। फिर हमने कुछ पत्रकारों से दोस्ती करके समाज सेवा करना शुरू कर दिया। अखबारों में मेरे बड़े बड़े नाम देख कर मुझे पार्षद का टिकट मिला। पार्षद के बाद कुछ धन इकट्ठा करके मैंने अपनी गरीबी दूर कर ली। इसके बाद चुनावों से पहले लोगों के कार्य करना, सड़क व नाली बनाना शुरू कर दिया था तथा अखबारों में अपने कार्यों का महिमामंडन करवाया। फिर नए सफर की शुरुआत कर दी अर्थात MLA का चुनाव लड़ा और मैं जीत गया। इस प्रकार यह मेरा राजनीतिक सफर रहा है। मेरा कहना है एक अच्छी राजनीतिक में बुराइयों की चरम सीमा होनी चाहिए क्योंकि बुरे बनकर वह बुराइयों को दूर कर सकता है। विमल—-MLA साहब मैं समझ गया। अब मैं अपने बच्चे को इसी तरीके से तैयार करूंगा। हर्षवर्धन—(मैं मन ही मन सोच रहा था भगवान अच्छा किया जो मुझे शिक्षक बनाया क्योंकि राजनीतिज्ञ बनने की योग्यता पाना हर एक के बस की बात नहीं है।) इस प्रकार मैं अपने घर लौट आया।  

हर्षवर्धन शर्मा (www.truefactsnews.com)

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