सर्दी लगने पर : लौंग का काढ़ा बनाकर मरीज को पिलाने से लाभ होता है।
कफ़ और खाँसी : मिट्टी का तवा या तवे जैसा टुकड़ा गर्म करें। लाल हो जाने पर बाहर निकालकर एक बर्तन में रखें और उसके ऊपर साथ लॉन्ग डालकर उन्हें सेंकें। फिर लॉन्ग को पीसकर शहद के साथ लेने से लाभ होता है।
दांत का दर्द : लॉन्ग के अर्क को रुई पर डालकर उस फाहे को दांत पर रखें। इससे दांत के दर्द में लाभ होता है।
मूर्छा एवं मिर्गी की शुरुआत : लॉन्ग को घिसकर उसका अंजन करने से लाभ होता है।
रतौंधी : बकरी के मूत्र में लॉन्ग को घिसकर उसको आँजने से लाभ होता है।
सिरदर्द : 🤕सिरदर्द में लॉन्ग का तेल सिर पर लगाने से या लॉन्ग को पीसकर ललाट पर लेप करने से राहत मिलती है।
श्वास की दुर्गंध : लॉन्ग का चूर्ण खाने से अथवा दातों पर लगाने से दांत मजबूत होते हैं। मुंह की दुर्गंध, कफ, लार, थूक के द्वारा बाहर निकल जाती है। इससे श्वास सुगंधित निकलती है, कफ मिट जाता है और पाचनशक्ति बढ़ती है।
गर्भिणी की उल्टी : 2 लॉन्ग को गर्म पानी में भिगोकर वह पानी पीने की सलाह एलोपैथ के डॉक्टरों द्वारा भी दी जाती है।
अग्निमांद्य, अजीर्ण एवं हैजा : लॉन्ग का अष्टमांश काढ़ा अर्थात आठवां भाग जितना पानी बचे, ऐसा काढ़ा बनाकर पिलाने से रोगी को राहत मिलती है।
हैजे में प्यास लगने पर अथवा मिचली आने पर : 7 लॉन्ग अथवा 2 जायफल अथवा 2 ग्राम नागरमोथ पानी में उबालकर ठंडा करके रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
खांसी, बुखार, अरुचि, प्रमेह, संग्रहणी एवं गुल्म : लॉन्ग, जायफल एवं लेंडीपीपर 1 भाग, बहेड़ा 3 भाग, काली मिर्च 3 भाग और लॉन्ग 16 भाग लेकर उसका चूर्ण करें। उसके बाद 2 ग्राम चूर्ण में उतनी ही मिश्री डालकर खाएं। इससे लाभ होता है।
मूत्रल : लॉन्ग का चूर्ण नित्य 125 मि.ग्रा. से 250 मि.ग्रा. लेने से मूत्रपिंड से मूत्रद्वार तक के मार्ग की शुद्धि होती है और मूत्र खुलकर आता है।
खाँसी के लिए लवंगादिवटी : लॉन्ग, काली मिर्च, बहेड़ा– इन तीनों को समान मात्रा में मिला लें। फिर इन तीनों की सम्मिलित मात्रा जितनी खैर की अंतरछाल अथवा सफेद कत्था भी इसमें डालें। इसके पश्चात बबूल की अंतरछाल के काढ़े में 3- 3 ग्राम वजन की गोलियां बनायें। रोज दो तीन बार एक- एक गोली मुंह में रखने से खांसी में शीघ्र राहत मिलती है।
खांसी वगैरह के लिए लवंगादिचूर्ण : लॉन्ग, जायफल और लेंडीपीपर आधा तोला, काली मिर्च 2 तोला और सोंठ 16 तोला लेकर उसका चूर्ण तैयार करें। अब चूर्ण के बराबर मात्रा में मिश्री मिलाएं। यह चूर्ण तीव्र खांसी, ज्वर, अरुचि, गुल्म, श्वास, अग्निमांद्य एवं संग्रहणी में उपयोगी है।
भानु प्रकाश शर्मा (मार्मिक धारा)
हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)