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वाह री सभ्यता

by marmikdhara
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एक जमाना था
तन ढकने को कपड़े न थे
फिर भी लोग तन ढ़कने का प्रयास करते थे
आज कपड़ों के भंडार हैं
फिर भी तन दिखाने का प्रयास करते हैं
हम सभ्य जो हो रहे हैं ।

एक जमाना था
आवागमन के साधन कम थे
फिर भी लोग परिजनों से मिला करते थे।
आज आवागमन के साधनों की भरमार है।
फिर भी लोग न मिलने के बहाने बनाते हैं ।
हम सभ्य जो हो रहे हैं ।

एक जमाना था
गाँव की बेटी का सब ख्याल रखते थे
आज पड़ौसी की बेटी भी उठा ले जाते हैं
हम सभ्य जो हो रहे हैं ।

एक जमाना था
लोग गांव के बुजुर्गों का हालचाल पूछते थे
आज माँ-बाप तक को
वृद्धाश्रम में डाल देते हैं
हम सभ्य जो हो रहे हैं ।

एक जमाना था
खिलौनों की कमी थी ।
फिर भी मौहल्ले भर के बच्चे
साथ खेला करते थे ।
आज खिलौनों की भरमार है,
पर घर-द्वार तक बंद हैं ।
हम सभ्य जो हो रहे हैं ।

एक जमाना था
गली-मोहल्ले के जानवर तक को
रोटी दी जाती थी ।
आज पड़ौसी के बच्चे भी भूखे सो जाते हैं
हम सभ्य जो हो रहे हैं !

एक जमाना था
नगर-मोहल्ले मे आए अनजान का भी परिचय पूछ लेते थे ।
आज तो पड़ौसी के घर आए मेहमान का
नाम भी नहीं पूछते ।
हम सभ्य जो हो रहे हैं !

वाह री सभ्यता !

भानु प्रकाश शर्मा (मार्मिक धारा)
हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)

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