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सुदामा का सत्कार……

by marmikdhara
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सुदामा नाम के एक ब्राह्मण श्रीकृष्ण के परम मित्र थे। उन्होंने श्री कृष्ण के साथ गुरुकुल में शिक्षा पायी थी। वे ग्रहस्थ होने पर भी संग्रह- परिग्रह से दूर रहते हुए प्रारब्ध के अनुसार जो कुछ भी मिल जाता उसी में संतुष्ट रहते थे। भगवान की उपसना और भिक्षाटन यही उनकी दिनचर्या थी। उनकी पत्नी परम पतिव्रता और अपने पति के साथ हर अवस्था में सतुष्ट रहने वाली थी।

एक दिन दु:खिनी पतिव्रता भूख से कांपते हुए अपने पति के पास गयी और बोली- भगवन! साक्षात लक्ष्मी पति भगवान श्रीकृष्ण आपके सखा है। वे ब्राह्मणों के परम भक्त है। आप उनके पास जाइए। जब वे आपकी व्यथा जानेगे। तो वे आपको बहुत सा धन देंगे। वे इस समय द्वारका में निवास कर रहे है। आप वहां अवश्य जाइए, मुझे विश्वास है कि वे दीनानाथ आपके बिना कहे ही आपकी दरिद्रता दूर कर देंगे।

जब सुदामा की पत्नी ने उनसे कई बार द्वारका जाने की प्रार्थना की। तब उन्होंने सोचा – धन की तो कोई बात नहीं है परंतु भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन हो जाऐंगे। ऐसा सोचकर सुदामा ने द्वारका जाने का निश्चय किया। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा घर में कोई वस्तु श्रीकृष्ण को भेंट देने लायक हो तो उसे दो। ब्राह्मणी पास के ब्राह्मणों के घर से चार मुट्ठी चिउड़े मांगकर एक कपड़े में बांध कर पतिदेव को दे दिए। ब्राह्मण देवता उन चिउड़ो को लेकर द्वारका के लिए चल पड़े।

द्वारका पहुंचने पर सुदामा अन्य ब्राह्मणों के साथ पूछते हुए श्रीकृष्ण के महल में पहुंचे। सब लोग उनकी दीन हीन अवस्था देककर उनपर हंस रहे थे। उन्होंने द्वारपाल से कहा भैया- श्रीकृष्ण से कह दो की उनसे मिलने उनके बचपन का सखा सुदामा आया है। पहले तो द्वारपाल को विश्वास ही नहीं हुआ, लेकिन बाद में उसने जा कर श्रीकृष्ण से कहा- प्रभु दरवाजे पर एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण खड़ा है। उसकी दरिद्रता देखकर द्वारका की धरती भी आश्चर्य चकित है। वह अपना नाम सुदामा बताता है। कहता है मै श्री कृष्ण का मित्र हूं।

सुदामा नाम सुनते ही श्रीकृष्ण की खुशी का ठिकाना ना रहा और नंगे पांव दौड़ते हुए दरवाजे तक पहुंचे। उन्होंने सुदामा को अपने अंगपाश में समेट लिया- मित्र तुम आए तो लेकिन बहुत कष्ट भोगने के बाद आए। द्वारका में तुम्हारा स्वागत है। भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा को ले जाकर अपने पास बिठाया , उन्हे स्नान कराकर रेशमी वस्त्र पहनाए। रुक्मिणी स्वयं उन्हे पंखा झलने लगी। बहुत समय तक बचपन की बात करने के बाद श्री कृष्ण ने कहा- मित्र भाभी ने मेरे लिए क्या भेजा है। पहले तो सुदामा संकोच करते रहे, लेकिन अंत में श्रीकृष्ण ने चिउड़े निकाल ही लिए। भगवान ने उन तीन मुट्ठी चिउड़ो के बदले तीनों लोको की सम्पत्ति दे डाली।

भानु प्रकाश शर्मा (मार्मिक धारा)
हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)

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