चलिए मित्रों अब अपनी कहानी पर चल रहे हैं यह कहानी जीवन जीने की कला नामक शीर्षक पर है लेकिन आज की समस्या पर नहीं है यह एक सच्ची कहानी है ,अथवा जिसकी यह कहानी है, हो सकता है उन तक यह कहानी पहुंच जाए वह मेरे बड़े हैं इसलिए उनका मैं क्षमा प्रार्थी हूं। लेकिन मैं जानता हूं वह नाराज नहीं होंगे । पात्रों का नाम बदलने का मन नहीं कर रहा फिर भी बदल रहा हूं लेकिन केवल दो पात्रों के नाम बदले हैं।
पाठको मैं अपने बारे में नहीं बताना चाहता लेकिन फिर भी बताना पड़ता है मेरे नाना जी जो कि अंग्रेजी के प्राध्यापक थे उनकी दो बेटी एक मेरी मां और दूसरी मेरी मौसी दोनों ही सरकारी अध्यापिका से रिटायर्ड हो चुकी है।इन दोनों अध्यापिका के बनने के बाद मम्मी के परिवार में यानी मेरे ननिहाल में सरकारी अध्यापिकाओं की होड़ लग गई थी। सारी अध्यापिका ओं के साथ सारे अध्यापक हैं उसी कड़ी में मेरी मम्मी की मौसी अथवा मेरी छोटी नानी जो मेरी नानी से 15 से 20 वर्ष छोटी थी। वह भी अध्यापिका थी। अब वह इस संसार में नहीं है। इसलिए मित्रों हम चाहे कितना भी बड़ा छोटा व्यवसाय करें अध्यापक वाले गुण हममें भी जन्मजात हैं। क्या करें जीन प्रॉब्लम है चलिए छोड़िए आज यह कहानी मेरी मम्मी की मौसी अथवा मेरी छोटी नानी की है।
मेरी छोटी नानी जिनका नाम रोहिणी देवी है शादी के मात्र 3 साल बाद ही उनके पति का निधन हो गया हमारी नानी ने उनको अपनी तीसरी बेटी की तरह पाला उनको भी पढ़ाया और सरकारी नौकरी लगाई। उनके एक पुत्र है जिसको 11वी क्लास बाद STC कर लेने पर पिताजी की नौकरी मिल गई। जब उसकी उम्र मात्र 18 साल की थी। आज की दौड़ का 18 साल का बच्चा दुनिया को बेच खाए। लेकिन वह बहुत ही भोले थे उनकी पहली पोस्टिंग धौलपुर में हुई वहां जाकर उन्होंने ज्वाइन किया।मेरे पिताजी उनको उनके सरकारी स्कूल के पास ही कमरा किराए पर दिला कर आए। वह जिस मकान में रहते थे वह एक ब्राह्मण का मकान था। वह पटवारी थे। उनका नाम रमाकांत शर्मा था। उनके पास उनका साथी पटवारी गोपी चंद शर्मा अक्सर आता जाता रहता था एक दिन वह आया
गोपीचंद-रमाकांत जी घर पर है क्या?
रमाकांत-अरे यार घर पर हैं, घर से कहां जाएंगे।
गोपीचंद-मैं भी यही सोच कर आया हूं।
रमाकांत-आ जा यार
(तभी हमारे मामा जी स्कूल से आए और अपने कमरे की ओर प्रस्थान कर रहे थे। गोपीचंद की नजर हमारे मामा जी पर इस तरह पड़ी जैसे शादी के मंडप पर नवविवाहित दूल्हे की नजर दुल्हन पर पड़ती है। गोपीचंद कमरे में घूरते हुए आए और रमाकांत जी से पूछा)
गोपीचंद-यार तेरे घर में कोई नया किराएदार आया है।
रमाकांत-हां अभी सप्ताह भर पहले ही आया है उसका नाम रोहित है बहुत ही सीधा बच्चा है।
गोपीचंद-क्या कोई नौकरी करता है
रमाकांत-हां सरकारी नौकरी करता है
गोपीचंद-यार एक बात और पूछनी है लड़का ब्राह्मण है क्या?
रमाकांत-हां लड़का ब्राह्मण है
(यह सुन गोपीचंद के चेहरे पर एक एक विलेन(खलनायक)जैसी मुस्कान चेहरे पर आ गई। वास्तविकता में गोपीचंद बहुत तेज और चालाक था। वह बोला)
गोपीचंद-यह तो बड़ी खुशी की बात है इसके कितने भाई- बहन हैं
रमाकांत-यह इकलौता है लेकिन तुम इतनी पूछताछ क्यों कर रहे हो।
गोपीचंद-यार अभी मेरी एक बड़ी बेटी का विवाह कहां हुआ है लड़का ढूंढते ढूंढते मेरी मोटरसाइकिल के टायर दो बार बदल गए हैं लेकिन लड़का नहीं मिला।
रमाकांत-तू तो लड़का तीन-चार साल से ढूंढ रहा है। और जो साल भर पहले तेरी लड़की की शादी हुई थी जिसमें हम नही आ पाये थे वो?
गोपीचंद-नहीं यार, वह तो बड़े भाई साहब की लड़की की शादी थी।
रमाकांत-हां याद आया वह तो तेरे बड़े भाई साहब की लड़की की शादी थी। लेकिन तेरी बेटी तो उससे बड़ी है।
गोपीचंद-हां यार पहली बात तो कोई मेरी बेटी को पसंद नहीं करता क्योंकि वह मन की साफ है उसे जो अच्छा लगता है वह बोल देती है और लोग बात का बतंगड़ बना कर मेरी बेटी को झगड़ालू के नाम से प्रसिद्ध कर रखा है मैं सभी भाइयों में सबसे अच्छा कमाता हूं तथा मेरा भी स्वभाव साफ है लेकिन मुख्य बात तो मेरी कमाई को देखकर लोग मुझसे ईर्ष्या करते हैं।(बस मित्रों गोपीचंद अपने चाचा की मेहरबानी से सरकारी नौकरी कर रहा है वरना वह नंबर वन का बदमाश था और पूरे गांव मे नंबर वन का झगड़ालू है चालाक, बेईमान है इन्हीं गुणों से उसकी बेटी भी सुसज्जित है)
गोपीचंद-रमाकांत जी कैसे भी करके इस लड़के से मेरी बेटी की शादी करवा दो।
रमाकांत-(रमाकांत जी जानते थे यह बहुत बदमाश तथा इसकी बेटी तो उसकी भी गुरु है इस बेचारे का जीवन खराब हो जाएगा। यह सोचकर उन्होंने कहा) तेरी लड़की की उम्र तो ज्यादा है इसकी उम्र तो कम है मैं कोई दूसरा लड़का बता दूंगा।
गोपीचंद-जी मेरी गाय जैसी बेटी घर के काम में इतनी व्यस्त रही कि बेचारी पढ़ नहीं पाई इसलिए मैंने हायर सेकेंडरी की सारी डिग्रियां दूसरे राज्यों से दिलवाई है
रमाकांत-लेकिन मार्कशीट में उम्र का पता चल जाता है वह पढ़े लिखे लोग हैं।
गोपीचंद-अरे यार मैं तुम्हें समझाने की कोशिश कर रहा हूं बेचारी का ध्यान पढ़ाई में कम था इसलिए दूसरे राज्य से उसकी डिग्री बनवाई है तो उम्र भी बदल देंगे। मुझे नौकरी थोड़ी करानी है वह नौकरी कर भी नहीं सकती।
रमाकांत – ठीक है
गोपीचंद -अच्छा यार आज तो मैं चलता हूं मुझे कहीं जाना। कल फिर आऊंगा और अब तो आना जाना लगा ही रहेगा।
रमाकांत -जैसी तेरी मर्जी (रमाकांत सीधे आदमी है साथ में, होने के कारण जबरदस्ती की दोस्ती झेल रहे हैं) दूसरे दिन गोपीचंद थी 4:00 बजे के समय आया। उस समय मेरे मामा जी जिनका स्कूल 7:00 से 12 तक का था 12:00 बजे आकर वह सो जाते हैं तथा 4:00 बजे कमरे से बाहर टहलते रहते थे। गोपीचंद मेरे मामाजी को ऐसे देख रहा था जैसे शेर बकरी के शिकार से पहले देखता है।
गोपीचंद -रमाकांत जी एक बार लड़के से बात करवा दो।
रमाकांत -जी ठीक है (तभी रमाकांत जी मेरे मामा जी रोहित को बुलाते हैं)
अरे रोहित चाय पी लो अंदर आ जाओ।
रोहित- नहीं अंकल अभी चाय पी है।
गोपीचंद -अरे चाय तो दोबारा भी पी जा सकती है आ जाओ बेटा।
(ज्यादा आग्रह करने पर मेरे मामा जी जो कि संकोची स्वभाव के थे दो बड़ों के आग्रह पर “ना” न कह पाए और कमरे में आ गए और कुर्सी पर बैठ गए तभी गोपीचंद ने बोलना शुरू किया)
गोपीचंद -और बेटा कहां के रहने वाले हो
रोहित -भरतपुर के हैं अंकल
गोपीचंद -कितने भाई बहन हो (जबकि गोपी चंद को पता था फिर भी वह हमारे मामा जी से सुनना चाहते थे)
रोहित -एकलौता हूं
गोपीचंद -पापा क्या करते हैं
रोहित -सर पापा का मेरे बचपन में ही निधन हो गया लेकिन मम्मी मेरी आठवीं तक की स्कूल की प्रधानाचार्य है( यह सुनकर गोपीचंद की आंखें खुली की खुली रह गई जब उन्होंने “प्रधानाचार्य” शब्द सुना उन्होंने कहा क्या बेटा “प्रधानाचार्य” है)
रोहित -हां अंकल (तभी चाय पीकर मेरे मामा जी अपने कमरे में चल दिए। तब गोपीचंद रमाकांत जी से बड़ी खुशी से बोला)
गोपीचंद -यार लड़के में तो एक के बाद एक खूबी निकलती जा रही है और लड़का तो मुझे गाय के सामान लगता है(ऐसा कहकर तथा बातें करके गोपीचंद चला गया तथा दूसरे दिन पुन: वही 4:00 बजे आ गया)
गोपीचंद -रमाकांत जी है क्या? (तभी रमाकांत जी की पत्नी आती है और कहती हैं नमस्कार भाई साहब वह अभी सो रहे हैं आप कहो तो जगा दूं। रमाकांत जी की पत्नी ने इसलिए ऐसा कहा शायद वह सो रहे हैं तो वापस चला जाए लेकिन गोपीचंद तो निर्लज्ज व्यक्ति था अपने कार्य से मतलब रखने वाला, उसे किसी से कोई लेना देना नहीं था वह गजब का स्वार्थी था। रमाकांत जी की पत्नी ने बेमन से रमाकांत जी को जगाया)
रमाकांत जी की पत्नी -यह गोपीचंद रोज-रोज क्यों आ रहा है।
रमाकांत -अरे रोहित की शादी अपनी बेटी से कराना चाहता है इसलिए रोज रोज आता है वरना बिना काम के तो यह अपने बाप को भी नहीं पूछता।
रमाकांतजी की पत्नी-क्यों रोहित की जिंदगी बर्बाद कर रहे हो लड़का गाय जैसा है और उसकी बेटी इस पर गई है बहुत ज्यादा लड़ती व झगड़ती है अपने गांव एवं कॉलोनी में प्रसिद्ध है यह दोनों बाप बेटी लड़ाई झगड़े में अव्वल है।
रमाकांत -मैं क्या जबरदस्ती पीछे लग रहा हूं उसे अंदर भेज दो।(रमाकांत जी की पत्नी गोपीचंद से कहती है अंदर आ जाइए और गोपीचंद अंदर कमरे में आ जाता है और कहता है)
गोपीचंद- अरे रमाकांत जी यार हमेशा सोते रहते हो रोहित आ गया क्या?
रमाकांत -अरे तुम मुझसे नहीं रोहित से मिलने आया है
गोपीचंद-ऐसा नहीं है लेकिन फिर भी रोहित आ गया चलो उसके कमरे में चलते हैं यार इकलौता लड़का सरकारी नौकरी, मां प्रधानाचार्य, कोई बहन नहीं है यह सोच कर मुझे सारी रात नींद नहीं आई। कैसे भी लड़का अपने जाल में आ जाए अर्थात मेरा कहने का मतलब है कि मेरी लड़की की शादी इस लड़के से हो जाए। चलो लड़के के कमरे में चलते। (जब तक रमाकांत जी कुछ बोलते गोपीचंद रमाकांत का हाथ पकड़कर उन्हें रोहित यानी मेरे मामा जी के कमरे में ले गया। रोहित सो रहा था वह तुरंत जाग गया और उन दोनों के पैर छुए और चाय बनाने ही लग रहे थे कि तभी रमाकांत बोले)
रमाकांत -बेटा चाय का कष्ट मत करो चाय के लिए मैं अंदर बोल चुका हूं हम तीनों की जाए अंदर से आ रही है।
रोहित -कोई बात नहीं आप मेरे कमरे में आए हैं तो चाय मुझे बनानी चाहिए।
रमाकांत -कोई बात नहीं एक ही बात है और चाय बन चुकी है।
गोपीचंद -कोई बात नहीं बेटा चाय बन कर आ रही है (बड़े निर्लज्ज भाव से बोले) और बताओ अपने बारे में।
रोहित -क्या बताऊं
गोपीचंद-आप स्कूल कैसे जाते हो?
रोहित -अंकल पैदल ही जाता हूं मेरा स्कूल 1 किलोमीटर ही है अच्छा अंकल जी यह राजदूत मोटरसाइकिल आपकी है?
गोपीचंद -हां बेटा मेरी ही है क्यों बोलो (बड़ी उत्सुकता से बोले)
रोहित -अंकल मुझे मोटरसाइकिल चलाने की बड़ी इच्छा है लेकिन मुझे चलानी नहीं आती (क्यों जी मामा जी मात्र 18 साल उम्र थी और वह एक भोली गाय थे)
गोपीचंद-(बस एक मौके की तलाश थी और मौका आगे से ही मिल गया) हां बेटा मोटरसाइकिल तो मैं तुम्हें बहुत जल्दी चलाना सिखा दूंगा। मैं रोज जल्दी सुबह मोटरसाइकिल सिखाने आ जाऊंगा तुम्हारी ट्रेनिंग कल सुबह से ही शुरू होगी तुम तैयार रहना।(रमाकांत जी कुछ बोलते उससे पहले गोपीचंद ऐसा कह कर जल्दी से चाय पी कर वहां से चल दिया) दूसरे दिन सुबह रोहित का दरवाजा खटखटाया फिर रोहित ने दरवाजा खोला।
रोहित -अंकल आप (गोपीचंद को देखते हुए बड़े आश्चर्य के साथ)
गोपीचंद- हां बेटा, मोटरसाइकिल सीखने नहीं चलना क्या? कल बात हुई थी ना कि मैं सुबह जल्दी रोज आ जाया करूंगा।
रोहित-अरे अंकल मैं तो ऐसे ही कह रहा था।
गोपीचंद- 5 मिनट में नीचे आ जाओ मैं नीचे तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं।(वैसे तो हमारे मामा जी की इच्छा नहीं थी लेकिन मोटरसाइकिल सीखने की प्रबल इच्छा ने उन्हें तुरंत तैयार कर नीचे भेज दिया क्योंकि उम्र मात्र 18 साल की थी जो कि सारा खेल कर रही थी। इस प्रकार गोपीचंद रोज रोज सुबह हमारे मामा जी को मोटरसाइकिल सिखाने आ जाता। गोपीचंद की इतनी मेहनत देख कि रोज रोज सुबह आना रमाकांत जी की पत्नी रमाकांत जी से बोलती है गोपीचंद रोज-रोज रोहित को मोटरसाइकिल सिखाने आ जाते हैं बिना मतलब तो यह अपने बाप को भी नहीं पूछता आजकल रोज सुबह सुबह आ जाता है क्या मकसद है?)
रमाकांत -मैंने कहा था ना यह अपनी लड़की की शादी रोहित से कराना चाहता है इसलिए रोहित को अपने जाल में फंसा रहा है
रमाकांत की पत्नी- आप रोहित को समझाइए कि अच्छा आदमी नहीं है कहीं लड़के को बिगाड़ नहीं दे।
रमाकांत -नहीं लड़के को बिगाड़ेगा नहीं क्योंकि रोहित में इसे अपना दामाद दिख रहा है चलो आज मैं रोहित को भी समझाता हूं।
(जब यहां रमाकांत एवं रमाकांत की पत्नी कि यह बात चल रही थी उस समय हमारे मामा जी को मोटरसाइकिल की ट्रेनिंग लेते हुए 10 दिन बीत चुके थे और हमारे मामा जी को गोपीचंद प्राणों से प्रिय लगने लगे थे तथा उनको मोटरसाइकिल चलाने का चस्का लग चुका था ऐसी स्थिति में रमाकांत जी मेरे मामाजी को समझाने रोहित के कमरे में आए और बोले रोहित बेटा मुझे तुमसे कोई बात करनी है)
रोहित -हां अंकल
रमाकांत -बेटा तुम इस गोपीचंद से दूर रहा करो यह आदमी ठीक नहीं है।
रोहित- यह क्या कह रहे हैं अंकल गोपी चंद जी तो बहुत अच्छे आदमी हैं उन्होंने कल मुझे 4 घंटे के लिए मोटरसाइकिल दी थी और पेट्रोल भी उन्होंने डलवाया था। उन्होंने कहा कि वह मेरी शादी अपनी लड़की से कर देंगे और दहेज में नई मोटरसाइकिल भी देंगे।
रमाकांत -क्या बेटा तुमने उनकी लड़की देख रखी है?
रोहित -नहीं अंकल आप कैसी बात कर रहे हैं मेरे ऐसे संस्कार नहीं है कि किसी की बेटी को मैं शादी से पहले देखूं।(रमाकांत जी समझ गए हमारे मामा जी पर गोपीचंद का जादू चल गया था इसलिए उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं कहा नहीं मामा जी सारी बातें गोपीचंद से ना कह दे। लेकिन मामा जी ने उनकी अंदेशों को गलत नहीं ठहराया और सारी बात गोपीचंद से कह दी ।दूसरे दिन गोपीचंद सीधे रमाकांत जी के घर में आकर बोला।
गोपीचंद– रमाकांत जी मुझे आपसे यह उम्मीद नहीं थी।
रमाकांत -क्या हुआ?
गोपीचंद-आप भी मेरे रिश्तेदारों गांव वालों और कॉलोनी वालों की तरह मुझसे ईर्ष्या रखते हो। आपने मेरे बारे में रोहित से क्या कहा? आप नहीं चाहते कि रोहित मेरा दामाद बने आप मेरी बेटी को खुशहाल नहीं देख सकते। (रमाकांत जी समझ गये थे कि रोहित ने सारी बात गोपीचंद से कह दी है अब उन्होंने बात संभाली )
रमाकांत -गोपीचंद तू यार बिल्कुल बेवकूफ है
गोपीचंद -तुम बुराई कर रहे हो और मुझे बेवकूफ बता रहे हो कैसे बेवकूफ हूं मैं।
रमाकांत -चाय पी और सुन मैं तो रोहित के मन को टटोल रहा था। कि जब तुमने कहा था “मुझे मेरी बेटी की शादी करनी है उसी समय मैंने ठान ली कि मैं तेरी कैसे मदद कर सकता हूं? इसलिए मैंने जाकर तेरी बुराई कर रोहित के मन की बात जान ली। लेकिन बात जानने के लिए मुझे थोड़ी बहुत बुराई करनी पड़ी । हम तो तेरी भलाई के लिए कह रहे हैं और तू बुरा मान गया। (इस बात को सुनकर गोपीचंद के अंदर विशेष बदलाव आया गुस्सा मुस्कान में बदल गया। क्योंकि वह दुनिया के स्वार्थी व्यक्ति में से एक था वह बोला)
गोपीचंद-(रंग बदलते हुए) अरे मुझे पहले से यकीन था। रमाकांत जी मेरे बारे में गलत नहीं सोच सकते क्योंकि रमाकांत जी मेरे साफ-सुथरे स्वभाव से परिचित हैं(रमाकांत जी मन ही मन सोच रहे थे हां मैं तो तेरे स्वभाव से अच्छी तरीके से परिचित हूं कि यह तो दुनिया का सबसे बड़ा शातिर व्यक्ति है फिर बोले)
रमाकांत-बिल्कुल मैं तो सभी से कहता हूं गोपीचंद जी जैसा सीधा-साधा व्यक्ति कोई नहीं गोपीचंद बहुत भोले हैं और मन के साफ हैं।(गोपीचंद अपनी तारीफ सुनकर ऐसे शर्मा रहा था जैसे जब पहली बार दुल्हन को देखने जाते हैं तो वह शरमाती र्है)(उसके जाने के बाद मेरी पत्नी आई और बोली गोपीचंद कैसे नाराज हो रहा था मैंने उसे सारा घटनाक्रम बताया और पत्नी से कहा)
रमाकांत—-मैंने झूठ बोल कर अपनी जान बचाई है। रोहित पर ऐसा नशा छाया हुआ है। उसमें मोटरसाइकिल क्या चलाने को दे दी? उसमें सारी बातें गोपीचंद से कह दी। देखो हम कुछ नहीं कर सकते। जब किसी के साथ गलत होने वाला होता है। तो भगवान सबसे पहले उसकी बुद्धि को हर लेता है। अब किसी के भाग्य में कष्ट है तो हम क्या कर सकते हैं?
अब गोपीचंद की लड़की कि किसी से तो शादी होगी और शादी के जोड़े तो भगवान बनाता है। किसी की किस्मत में यदि कष्ट लिखे हैं, तो हम क्या कर सकते हैं?
(रमाकांत जी हार कर बैठ गए और इस संबंध में कभी भी दोबारा हमारे मामा जी से बात नहीं की। राजदूत मोटरसाइकिल कमाल दिखा रही थी और 1 दिन राजदूत की मेहरबानी ने गोपीचंद पटवारी को हमारे नाना नानी के घर पहुंचा दिया। पहले गोपीचंद ने हमारे मामा जी को चाबी भर कर भेजा। सर्वप्रथम घर में मामा जी का प्रवेश होता है। नाना नानी के घर पर मैं भी था। और जो छोटी नानी जिंनकी नौकरी थोड़ी दूर थी। इसलिए वह केवल शनिवार रविवार को आती थी।
(भरतपुर में मामा जी ने घर के दरवाजे को खटखटाया। मैंने दरवाजा खोला।)
रोहित—अरे हर्ष क्या हाल हैं?
हर्ष—नमस्ते मामा जी (मैंने मामा जी के पैर छुए मैं चौथी क्लास में पढ़ता था)
रोहित—मौसी, मौसा जी कहां पर है?(बड़ी हड़बड़ाहट में बोले)
हर्ष—सामने वाले कमरे में हैं।
(जल्दी से कमरे में गए और मेरे नाना नानी के पैर छुए। और उन्होंने कहा।)
रोहित—अरे मौसा जी एक ठोस पार्टी आई है। बहुत पैसे वाले हैं। तथा खानदानी लोग हैं।
(हमारे नाना जी जो कि एक प्राध्यापक से रिटायर व्यक्ति थे उन्होंने कहा)
नानाजी—तुझे कैसे पता की खानदानी है? उन्होंने ही तो बताया होगा। बेटा एक बात याद रखो डकैत भी कभी अपने आपको डकैत नहीं बताता है। चलो कहां है वह?
(यह सारी पटकथा गोपीचंद जी के द्वारा लिखी गई थी। मामा जी तो केवल एक पात्र थे। पटकथा के अनुसार पहला प्रवेश मामा जी का था साथ साथ गुणगान भी शामिल था। इसके बाद गोपीचंद जी ने प्रवेश किया। गोपीचंद जी की बातचीत करने के मात्र 2 मिनट के अंदाज से ही नाना जी ने भाप लिया।गोपीचंद जी बहुत भले बनने की कोशिश कर रहे थे और अपनी भलाई का वर्णन कर रहे थे। तथा मेरे नाना जी को तरह-तरह के प्रलोभन भी साथ साथ दे रहे थे। लेकिन मेरे नानाजी एक प्राध्यापक थे। अध्यापक हो या प्राध्यापक इन लोगों में बड़ी खूबी होती है। कौन सा बच्चा शैतान है? और कौन सा बच्चा सीधा है? बस इसी अनुभव के साथ गोपीचंद को वह पहचान गए । इस प्रकार गोपीचंद का शातिरपना हमारे नाना जी के अनुभव के आगे हार गया। मैं सभी के लिए चाय नाश्ता की व्यवस्था कर रहा था। गोपीचंद के साथ दो लोग और आए थे। वह भी गोपीचंद की पटकथा के हिस्सा थे। वे केवल हां में हां मिलाने के लिए आये थे। इन सभी बातों के सार में मैंने एक शब्द अत्यधिक बार सुना वह शब्द “सुशील”शब्द था। हमारी नानी लड़की के रंग रूप के बारे में पूछती इत्यादि के सभी प्रश्नों का जवाब यह था। किं लड़की “सुशील” है। गोपीचंद की टीम ने केवल “सुशील” शब्द पर जोर दिया। उनके जाने के बाद नाना जी बोले)
नानाजी—रोहित देख मुझे यह लोग समझ में नहीं आये और भी बहुत से रिश्ते आ रहे हैं। लेकिन यह रिश्ता मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।
रोहित—नहीं मौसा जी, यह भोले लोग हैं। शायद अपनी बात सही से नहीं कह पा रहे हैं।
नानाजी– बेटा, भोला तो तू है। यह बहुत तेज लोग हैं।
(हमारे मामा जी पर राजदूत मोटरसाइकिल का भूत सवार था। उन्होंने अपनी मम्मी को मना लिया और लड़की देखने गए। वहां रमाकांत जी ने नाना जी को और स्पष्ट कर दिया तो नाना जी गोपीचंद के घर नहीं गए केवल हमारी दोनों नानी व मामाजी ही गये । नानाजी रमाकांत जी के घर रुक गए। हमारी छोटी नानी को लड़की पसंद ना होने पर भी बेटे की जिद पर शादी के लिए मान गई और हमारे मामा जी यह समझ रहे थे कि मेरी शादी भले लोगों से और पैसे वालों से हो गई है।)
(इस बीच मेरे जीवन में एक शब्द आया “सुशील”। इस शब्द को समझने के लिए मैंने सब से पूछा, सभी ने अलग अलग उत्तर दीये। यह शब्द मेरे ढंग से स्पष्ट नहीं हुआ।)
इस प्रकार मामा जी की शादी तय हुई। शादी की शुरुआत से ही गोपीचंद जी ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। घर के बड़े सब समझ गए कि गलत रिश्ता तय हो गया लेकिन मामा जी की जिद के आगे सब हार चुके थे। सर्वप्रथम मैंने मामी को देखा। मेकअप में मुझे लगा कि वह सांवली है। लेकिन शादी के 2 दिन बाद उनका वास्तविक रूप सामने आया। देखिए मित्रों, हम किसी के रंग रूप कर कोई कटाक्ष नहीं कर रहे हैं। क्योंकि मेरे स्वयं के कॉलेज के फोटो इतने बुरे हैं। कि मुझे अपने बताने में शर्म आती है। आज भी मैं सुंदर लोगों के बीच में फोटो नहीं खिंचवाता हूं। उसका कारण मुझे मेरे रंग की असलियत दिख जाती है। स्वयं के रुप की कमी के कारण मैं हमेशा गुणों की प्रशंसा करता हूं। क्योंकि इसके अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं है। चलिए, मेरे दुख को छोड़िए जिसकी कभी भरपाई नहीं हो पाएगी। कहानी पर आते हैं। जब मामी को हमने देखा तो हमें मामा की जिद्द समझ में नहीं आयी। लेकिन अब मेरे समझ में आ गया था कि “सुशील” शब्द का उच्चारण इतना क्यों हो रहा था?
मामी ने कॉलोनी की बड़ी-बड़ी योद्धाओं को धूल चटा दी। लड़ाई झगड़े में उनका कोई जवाब नहीं था। मामा जी का उत्पीड़न भी अति शीघ्र शुरू हो गया। मामा जी का जल्दी ही सभी रिलेशन में संबंध विच्छेद हो गया। मामा जी की इस हालत को देख हमने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने राजदूत मोटरसाइकिल पर दोषारोपण किया।
मित्रों मुझे इस “सुशील” शब्द से डर लगने लगा। ननिहाल में किसी ने भी अपनी मर्जी से शादी करने की हिम्मत नहीं जुटाई। मैं तथा मेरे भाइयों मैं भी भय व्याप्त हो गया। जब मेरे लिए लड़की देखने जाते तो मैं “सुशील” शब्द से डर जाता। जब भी लड़की के पिता कहते कि लड़की हमारी “सुशील” है। मैं डर के मारे कांपने लग जाता।
यह ऐसी सत्य कहानी है। कि किसी को लोभ लालच में शादी नहीं करनी चाहिए। आज मेरा मन करता है कि इस राजदूत कंपनी की मोटरसाइकिल पर केस कर दू। जिसकी लोकप्रियता ने हमारे मामा जी की जिंदगी बर्बाद कर दी। ना जाने कितनी बार हमारे मामा जी ने इस मोटरसाइकिल को बुरा भला कहा है। क्या करें जैसे भी कहानी है लेकिन सत्य हैं। इसलिए सभी को राय है कि “सुशील” शब्द से बच के रहना है।
हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)