पाठकों, “जीवन जीने की कला”नामक सीरीज के अंतर्गत एक नई कहानी लिख रहा हूं। यह कहानी काल्पनिक है। इसका वास्तविक जीवन से कोई लेना देना नहीं है। इस कहानी का किसी जाति धर्म लिंग समुदाय से कोई संबंध नहीं है। इसका उद्देश्य केवल कहानी को रोचक बनाने के लिए किया गया है। फिर भी यदि मैं अपने कार्य में सफल नहीं हो पाऊं। तो मैं आपका क्षमा प्रार्थी रहूंगा।
पाठकों इस पृथ्वी की सबसे बड़ी समस्या का वर्णन कर रहा हूं। जो कि 21वी सदी में अपना भयावह रूप ले चुकी है। वह है “नारी शक्ति”। नारी की शक्ति 21वीं सदी में इतनी बढ़ चुकी है। कि बेचारे पुरुष का जीना बड़ा मुश्किल हो गया है। हमने बहुत सारी किताबों में पढ़ा कि व्यक्ति को खुश रहना चाहिए। खुशी व उत्साह से हम संसार की बड़ी से बड़ी चीज प्राप्त कर सकते हैं। हम जब कुंवारे थे। तो यह सोचते थे कि शादीशुदा आदमी इतना दुखी क्यों रहता है? यह बात समझ में नहीं आ रही थी। बीसवीं सदी की नारी जिसमें हमारी मां आती है। उनकी सहनशीलता को हमने देखा और हमने भी यह कल्पना की कि हमारी पत्नी भी ऐसी ही होगी। लेकिन 21वीं सदी की नारी है जो टीवी के द्वारा नारी शक्ति को बहुत अधिक जान चुकी है। हमारे पिताजी का नाम श्री अशोक कुमार शर्मा जिन्होंने अपना एक जीवन एक सम्राट की तरह जीया है। उनकी बात आज भी एक हुकुम की तरह मानी जाती है। हमारा नाम भी हर्षवर्धन हैं तथा हमारा नाम भी एक हिंदू सम्राट से मिलता जुलता है। लेकिन जीवन में यह सम्राट वाली अनुभूति प्राप्त नहीं हुई। केवल नाम ही सम्राट जैसा है। आज मैं किसी को किसी नारी के प्रति आकर्षित होते देखता हूं। तो सोचता हूं कि “कैसे यह अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है।”नारी की शक्ति से भयभीत होकर यह कहानी लिख रहा हूं।
पाठकों मैंने बताया कि मैं कोचिंग में पढ़ाता था। वह कोचिंग एक यूनिवर्सिटी भी चलाती थी। मैं सबसे पुराना एंप्लॉय था। इसलिए कोचिंग व यूनिवर्सिटी का मैनेजमेंट भी संभालता था। यूनिवर्सिटी के व्यक्तियों को लंच में बातें करते सुना बस उसी का वर्णन कर रहा हूं। मेरा केबिन उनके पास ही था। उस कमरे की सारी बातें सुनाई देती थी कांच इस प्रकार का था कि मैं उनको देख सकता था लेकिन वह मुझे नहीं देख सकते थे।
चलिए कहानी पर आते हैं। जैसा मैंने बताया कि केबिन के पास वाले स्टाफ रूम में दो कर्मचारी बात कर रहे थे। जिनमें एक कर्मचारी का नाम राकेश था जो कि व्याख्याता हैं। दूसरे कर्मचारी का नाम जतिन है जो कि एक नॉन टीचिंग स्टाफ है। तथा मैनेजमेंट में है।
राकेश–आइए, जतिन लंच कर लेते हैं। अपना टिफिन ले आओ।
जतिन–अरे यार, आप कर लो मेरा मन नहीं है।
राकेश–अरे यार, यह क्या बात हुई। जितना मन हो उतना कर लोऔर तुम्हारा मूड कैसा हो रहा है? कोई टेंशन है क्या? आ जाओ टिफिन ले आओ।
जतिन–राकेश आज मैं टिफिन लेकर नहीं आया। घर में कुछ टेंशन हो गई इसलिए गुस्से में ध्यान ही नहीं रहा।
राकेश—भाभी जी ने याद नहीं दिलाया क्या?
जतिन–यार घर पर था तो दोनों में बहस हो रही थी। फिर रास्ते में उसने फोन भी करें। लेकिन मैंने नहीं उठाये। वह फोन लगातार कर रही है। मैंने गुस्से में फोन नहीं उठाया लंच के समय याद आया कि शायद वह टिफिन के लिए फोन कर रही होगी। अब मैंने फोन करा तो पता चला कि वह वास्तव में टिफिन को ही फोन कर रही थी।
राकेश–कोई बात नहीं मेरा टिफिन आया है पर बाजार से मंगवा लेते हैं।
जतिन–दुनिया भर की समस्याएं हैं और दूसरी तरफ पत्नी भी परेशान करती हैं।
राकेश–यार, यह तेरी अकेले की समस्या थोड़ी है। हर आदमी अपनी पत्नी से परेशान है। कोई बता देता है और कोई बता नहीं पाता है। टीवी न्यूज़ पेपरों में नारी शक्ति का इतना बखान हो चुका है। कि पुरुष का जीना मुश्किल हो गया।
(इन दोनों कर्मचारियों की बातें चल ही रही थी कि उनके बीच में 2 महिला कर्मचारी और स्टाफ रूम में आ गई। अब जो यह बात 2 में चल रही थी ।वह अब चार लोगों में शुरू हो गए दो महिलाएं और दो पुरुष। दोनों महिलाओं का परिचय बताता हूं एक का नाम रश्मि था जो की एक व्याख्याता थी। दूसरी महिला का नाम पूनम था जो कि काउंसलर थी। दोनों महिलाओं ने स्टाफ रूम में राकेश व जतिन का अभिवादन कर बातें करना शुरू करती हैं।
रश्मि–जतिन सर, आप भी टिफिन ले आइए और हमारे साथ ही लंच कर लीजिए।
राकेश–मैडम! सर, आज लंच लाना भूल गए।
पूनम–क्या बात है सर, घर में सब राजी खुशी है ना।
राकेश–सब राजी खुशी है। बस चलते समय कुछ बहस हो गई इसलिए जल्दी-जल्दी में टिफिन भूल आए।
पूनम–मैडम ने याद नहीं दिलाया। क्या इतना नाराज कर दिया ?
जतिन–नहीं उसने तो याद दिलाया लेकिन गुस्से में मैंने ही फोन नहीं उठाया। लंच समय जब मुझे टिफिन का याद आया तो मैंने उसको फोन करा तो उसने बताया कि वह लगातार टिफिन के लिए फोन कर रही थी।
पूनम–अब सर पत्नी भी क्या करें? पति के सारे नखरे झेलती है। फिर भी पति खुश नहीं रहते हैं। सारे जहां का गुस्सा घर में निकालते हैं। बाहर बस नहीं चलता है केवल घर ही मिलता है।
जतिन–नहीं मैडम ऐसा नहीं है। नारी जाति इतनी सीधी नहीं है। नखरे स्त्रियों में ज्यादा होते हैं। पुरुष तो बेचारा जैसा मिलता है। वह खा लेता है। जैसा मिलता है वह पहन लेता हैं।
पूनम–कभी सर आपने एक स्त्री के दृष्टिकोण से भी सोचा है। सारे दिन आपके घर का ध्यान रखती है। आपके बच्चों व माता-पिता का सभी का ध्यान रखती है।
जतिन–तो मैडम बताइए बेचारे पति का ही क्या दोष है। जिसको वह हर समय प्रताड़ित करती रहती है। अगर अपने दुख की कोई बात बताएं तो तुरंत हमारी कमी बता देती है। धैर्य नामक चिड़िया को जानती ही नहीं है।
पूनम—नहीं सर, ऐसा नहीं है।
जतिन–मैडम जितने भी दुनिया में बुद्धिमान व्यक्ति बने फिरते हैं। वह भी घर में मूर्ख कहलाते
हैं। यह उनकी पत्नी साबित करती है।
रश्मि–ऐसा नहीं है सर, जो लोग आपकी चिंता करते हैं। उनमें अक्सर विवाद हो जाता है।
जतिन–बताइए मैडम, पुरुष कम चिंता करता है पत्नी की। घर से बाहर जाते हैं तो पुरुष चिंतित रहता है। कि मेरी पत्नी से कोई कुछ ना कह दे। उसका कोई अनादर ना कर दे। पुरुष को स्त्री से ज्यादा चिंता रहती है। वह स्त्री को अपनी इज्जत मानता है और कामकाजी महिलाओं की पुरुष को उनके सम्मान की कितनी चिंता रहती है? यदि वह उन्हें कुछ समझाता है। तो इसमें बुरा क्या है?
पूनम–यह तो आप की दकियानूसी सोच का परिचायक है।
जतिन–मैडम आपको पता है कि कौन सा व्यक्ति किस प्रकार का है? पुरुष दुनियादारी को जानता है। वह एक क्रिमिनल टाइप पुरुष को तुरंत पहचान लेता है बजाय स्त्री के। पत्नीयां कुछ जानती नहीं है और मानती भी नहीं है।
पूनम–आज की लड़कियां पढ़ाई में तथा सभी कार्यों में पुरुषों से आगे हैं। सर, जरा अपनी सोच बदलो। पुरुषों से ज्यादा दिमाग रखती है। वह तुरंत पहचान जाती हैं। कि कौन सा व्यक्ति अच्छा कौन सा बुरा?
(इन सब की बात मैं भी सुन रहा था। मैं जो अपना कार्य कर रहा था वह भी बीच में छूट गया था)
रश्मि–चलो छोड़ो खाना खाते हैं। (लेकिन जतिन और पूनम दोनों एक दूसरे से नाराज हो चुके थे। यह देख कर मैंने सभी को अपने केबिन में बुलाया और चपरासी को चाय के लिए बोल दिया। मैंने पूछा क्या बात हो गई है? आप एक दूसरे से कैसे तेज तेज बोलने लगे?)
पूनम—नहीं, सर कोई बात नहीं ऐसे ही विचार विमर्श चल रहा है।
रश्मि–अरे सर, पति पत्नियों के बारे में अलग-अलग राय चल रही है। आप भी अपने विचार बता दीजिए। आप तो सब को मना कर रखते हैं।
हर्षवर्धन–(मन में, इस सवाल से तो मैं भी घबरा गया फिर भी मैंने सभी को टिप्स देने की कोशिश की।) मैं एक अध्यापक हूं। लोग मुझसे उम्मीद करते हैं कि हर सवाल का जवाब मेरे पास होगा लेकिन यह भी मुमकिन नहीं है।जहां तक पति-पत्नी के संबंधों के बारे में मैं कुछ कहना चाहता हूं जो कि मेरा अनुभव है। उसे मैं आपको बताता हूं। यह एक व्यवहारिक मामला है। हर संबंध में व्यवहार महत्वपूर्ण होता है। व्यवहार में शब्दों का महत्व होता है। बस पति पत्नी को सही शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। जैसे उदाहरण के तौर पर यदि आपको पत्नी को “हत्यारिन’ कहना है। यदि हत्यारिन शब्द का प्रयोग करोगे। हो सकता है आप में लड़ाई बुरी तरह से हो जाये। लेकिन जब आपका मन हत्यारिन कहने का हो रहा हो तो आप “कातिल” शब्द का प्रयोग करें। तो चाय के साथ नाश्ता भी मिलेगा। जैसे “तुम तो बहुत कातिल हो”यह पुरुषों पर भी लागू होता है। अगर पति को “क्लेशी” के बजाय आप कह सकते हैं। कि “तुम्हारा स्वभाव बहुत तेज है।”यदि आपका मन पत्नी को पागल कहने का करे तो आप उसे कह सकते हैं।”तुम बहुत भोली हो।”तो इस तरह शब्दों का ध्यान रखना। बस इतना सा ध्यान रखना कोई गलत शब्द ना निकले। दूसरी बात घर के बाहर आप चाहे दुनिया को पढ़ाते हो सिखाते हो। लेकिन घर में ज्ञान ना दें। बस ज्ञान ग्रहण करने की कोशिश करें। आप खुश रहने की कोशिश करें चाहे वह सच्चे रूप में हो या झूठे रूप में। क्योंकि मेरे दोस्तों जीवन के किसी भी क्षण का पता नहीं है। पता नहीं जीवन की रेल गाड़ी हमसे कब छूट जाए। इसलिए अच्छा कहिए, अच्छा सोचिए, अच्छा करिए फिर देखना अच्छा ही होगा।
इसके बाद वे सभी चाय पी कर खुशी-खुशी अपना कार्य करने लगे।
दोस्तों भागती हुई जिंदगी में थोड़ा सा रुको और सोचो कि कैसे हम खुश रह सकते हैं? जीवन आर्थिक से ज्यादा सामाजिक है। इसलिए ज्यादा से ज्यादा सामाजिक बनिये। जिससे हम खुशी के पास आ सके। अपने कर्मों में सत्यता लाने की कोशिश करें। यदि आपका परिवार खुश है तो समाज खुश है। समाज खुश है तो राष्ट्र ख़ुश हैं।
हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)