Monday, May 12, 2025
Home Uncategorized हिंदुओं के चारधामों से एक बद्रीनाथ धाम !

हिंदुओं के चारधामों से एक बद्रीनाथ धाम !

by marmikdhara
0 comment

बदरीनाथ मंदिर को बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है। जो अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है। यह हिन्दुओं के चार धाम मेें से एक धाम है। ऋषिकेश से यह 294 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। ये पंच बदरी में से एक बद्री भी है। उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिंदू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

बद्रीनाथ धाम चार धामों में से एक है। इस धाम के बारे में यह कहावत है कि ‘जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी’ यानी जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे पुनः माता के उदर यानी गर्भ में फिर नहीं आना पड़ता। शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य को जीवन में कम से कम एक बार बद्रीनाथ के दर्शन जरूर करने चाहिए।

ब्रदीनाथ के चरण पखारती है अलकनंदा। सतयुग तक यहां पर हर व्यक्ति को भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हुआ करते थे। त्रेता में यहां देवताओं और साधुओं को भगवान के साक्षात् दर्शन मिलते थे। द्वापर में जब भगवान श्री कृष्ण रूप में अवतार लेने वाले थे उस समय भगवान ने यह नियम बनाया कि अब से यहां मनुष्यों को उनके विग्रह के दर्शन होंगे।

बद्रीनाथ को शास्त्रों और पुराणों में दूसरा बैकुण्ठ कहा जाता है। एक बैकुण्ठ क्षीर सागर है जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं और विष्णु का दूसरा निवास बद्रीनाथ है जो धरती पर मौजूद है। बद्रीनाथ के बारे में यह भी माना जाता है कि यह कभी भगवान शिव का निवास स्थान था। लेकिन विष्णु भगवान ने इस स्थान को शिव से मांग लिया था।

चार धाम यात्रा में सबसे पहले गंगोत्री के दर्शन होते हैं यह है गोमुख जहां से मां गंगा की धारा निकलती है। इस यात्रा में सबसे अंत में बद्रीनाथ के दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ धाम दो पर्वतों के बीच बसा है। इसे नर नारायण पर्वत कहा जाता है। कहते हैं यहां पर भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी। नर अगले जन्म में अर्जुन और नारायण श्री कृष्ण हुए थे।

बद्रीनाथ की यात्रा में दूसरा पड़ाव यमुनोत्री है। यह है देवी यमुना का मंदिर। यहां के बाद केदारनाथ के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि जब केदारनाथ और बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं उस समय मंदिर में एक दीपक जलता रहता है। इस दीपक के दर्शन का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि 6 महीने तक बंद दरवाजे के अंदर इस दीप को देवता जलाए रखते हैं।

जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर का संबंध बद्रीनाथ से माना जाता है। ऐसी मान्यता है इस मंदिर में भगवान नृसिंह की एक बाजू काफी पतली है जिस दिन यह टूट कर गिर जाएगी उस दिन नर नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बद्रीनाथ के दर्शन वर्तमान स्थान पर नहीं हो पाएंगे।

बद्रीनाथ तीर्थ का नाम बद्रीनाथ कैसे पड़ा यह अपने आप में एक रोचक कथा है। कहते हैं एक बार देवी लक्ष्मी जब भगवान विष्णु से रूठ कर मायके चली गई तब भगवान विष्णु यहां आकर तपस्या करने लगे। जब देवी लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई तो वह भगवान विष्णु को ढूंढते हुए यहां आई। उस समय यहां बदरी का वन यानी बेड़ फल का जंगल था। बदरी के वन में बैठकर भगवान ने तपस्या की थी इसलिए देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को बद्रीनाथ नाम दिया।

यह है सरस्वती नदी के उद्गम पर स्थित सरस्वती मंदिर जो बद्रीनाथ से तीन किलोमीटर की दूरी पर माणा गांव में स्थित है। सरस्वती नदी अपने उद्गम से महज कुछ किलोमीटर बाद ही अलकनंदा में विलीन हो जाती है। कहते हैं कि बद्रीनाथ भी कलियुग के अंत में वर्तमान स्थान से विलीन हो जाएगी और इनके दर्शन नए स्थान पर होंगे जिसे भविष्य में बद्री के नाम से जाना जाता है।

यह है बद्रीनाथ का भव्य नजारा। मान्यता है कि बद्रीनाथ में भगवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। इस घटना की याद दिलाता है वह स्थान जिसे आज ब्रह्म कपाल के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मकपाल एक ऊंची शिला है जहां पितरों का तर्पण श्राद्घ किया जाता है। माना जाता है कि यहां श्राद्घ करने से पितरों को मुक्ति मिलती है।

बद्रीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं, जो रावल कहलाते हैं। यह जब तक रावल के पद पर रहते हैं इन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। रावल के लिए स्त्रियों का स्पर्श भी पाप माना जाता है।

बदरीनाथ जी की स्तुति!!!!!!!

पवन मंद सुगंध शीतल हेम मंदिर शोभितम्
निकट गंगा बहत निर्मल श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्।

शेष सुमिरन करत निशदिन धरत ध्यान महेश्वरम्।
शक्ति गौरी गणेश शारद नारद मुनि उच्चारणम्।
जोग ध्यान अपार लीला श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्।

इंद्र चंद्र कुबेर धुनि कर धूप दीप प्रकाशितम्।
सिद्ध मुनिजन करत जै जै बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्।

यक्ष किन्नर करत कौतुक ज्ञान गंधर्व प्रकाशितम्।
श्री लक्ष्मी कमला चंवरडोल श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्।

कैलाश में एक देव निरंजन शैल शिखर महेश्वरम्।
राजयुधिष्ठिर करत स्तुति श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्।

श्री बद्रजी के पंच रत्न पढ्त पाप विनाशनम्।
कोटि तीर्थ भवेत पुण्य प्राप्यते फलदायकम् ‍।

  हर हर महादेव

भानु प्रकाश शर्मा (मार्मिक धारा)
हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)

You may also like

Leave a Comment

True Facts News is renowned news Paper publisher in Jaipur, Rajasthan

Newsletter

Subscribe my Newsletter for new blog posts, tips & new photos. Let's stay updated!

Laest News

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by TrueFactsNews