जय जगदम्बे!
जय माँ महागौरी…
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेतांबर धरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा ।।
देवी दुर्गा के नौ रूपों में महागौरी आठवीं शक्ति स्वरूपा हैं।दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है।महागौरी आदिशक्ति हैं, इनके तेज से संपूर्ण विश्व प्रकाशमान होता है, इनकी शक्ति अमोघ फल दायिनी है।माँ महागौरी की आराधना से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा देवी का जीवन में पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी बनता है ।दुर्गा सप्तशती में शुम्भ -निशुम्भ से पराजित होकर गंगा के तट पर जिस देवी की प्रार्थना देवता गण कर रहे थे वह महागौरी है ।देवी गौरी के अंश से ही कौशिकी का जन्म हुआ जिससे शुम्भ -निशुम्भ के प्रकोप से देवताओं को मुक्त कराया ।यह देवी गौरी शिव की पत्नी हैं, यही शिवा और शांभवी के नाम से भी पूजित होती हैं।
महागौरी की चार भुजाएँ हैं, उनकी दायीं भुजा अभय मुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में त्रिशूल शोभता है।बायीं भुजा में ड़मरू डम-डम बज रही है और नीचे वाली भुजा से देवी गौरी भक्तों की प्रार्थना सुनकर वरदान देती है ।जो स्त्री इस देवी की पूजा भक्ति भाव सहित करती है, उनके सुहाग की रक्षा स्वयं देवी करती है ।कुँवारी लड़की माँ की पूजा करती है तो उसे योग्य वर प्राप्त होता है ।पुरुष जो देवी गौरी की पूजा करते हैं। उनका जीवन सुखमय रहता है, देवी उनके पापों को जला देती है और शुद्ध अंत:करण देती हैं ।मां अपने भक्तों को अक्षय आनंद और तेज प्रदान करती है ।
भानु प्रकाश शर्मा (मार्मिक धारा)
हर्षवर्धन शर्मा (मार्मिक धारा)