जयपुर, जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्य के चुनाव की तीन फेस में वोटिंग पूरी हो चुकी है। कांग्रेस और बीजेपी ने वोटिंग होते ही बाड़ेबंदी शुरू कर दी है। वोटिंग के बाद से ही सदस्यों की बाड़ेबंदी जारी है। बाड़ेबंदी के बावजूद कांग्रेस और बीजेपी को क्रॉस वोटिंग का डर सता रहा है। 4 सितंबर को रिजल्ट आने के बाद असली सियासी दांवपेच शुरू होंगे।
कांग्रेस ने विधायकों को अपने इलाके के पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य के चुनाव में बाड़ेबंदी करने की पूरी जिम्मेदारी दी है। जिला प्रमुख प्रधान बनाने में विधायकों की ही मुख्य भूमिका अहम है। प्रत्याशियों को जयपुर, जोधपुर, दौसा, सवाई माधोपुर, भरतपुर, और सिरोही जिले के उम्मीदवारों को अलग-अलग रिसाॅर्ट और होटलों में ठहरा रखा है। बीजेपी ने भी विधायकों के साथ चुनाव मैनेजमेंट की पूरी टीम लगाई है।
4 सितंबर को आने वाले रिजल्ट में हारने वाले उम्मीदवार बाड़ेबंदी से होंगे बाहर-
4 सितंबर को रिजल्ट आने के बाद हारने वाले उम्मीदवारों को बाड़ेबंदी से बाहर कर दिया जाएगा। 3 दिन तक जीते हुए उम्मीदवारों को कड़ी निगरानी में रखा जाएगा। कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों को क्रॉस वोटिंग का खतरा है। सियासी दांवपेच से बचने के लिए ही उम्मीदवारों को पहले ही होटल रिसोर्ट में भेज दिया गया है। इन चुनाव में बीजेपी को क्रॉस वोटिंग और उम्मीदवारों के टूटने का खतरा ज्यादा है, क्योंकि इन चुनावों में सत्ताधारी पार्टी को कई तरह के मैनेजमेंट से जुड़े एडवांटेज मिलते हैं। जो विपक्ष में होने के कारण बीजेपी के पास नहीं है।
अंदरूनी घात का खतरा-
दोनों पार्टियों ने बाड़ेबंदी भले ही कर ली हो, लेकिन गुटबाजी का असर साफ तौर पर प्रमुख प्रधान के चुनाव में दिखेगा। कई जगहों पर भितरघात के अब से ही आसार दिखने लगे हैं। रिजल्ट आने के बाद इस बात पर बहुत कुछ निर्भर करेगा कि प्रमुख और प्रधान उम्मीदवार किस खेमे का है। कांग्रेस की टिकट बांटने में विधायकों की ज्यादा चली है। इसलिए विरोधी खेमा नाराज है। बीजेपी में भी नाराजगी कम नहीं है। लेकिन रिजल्ट आने के बाद असली समीकरण का पता चलेगा।
इस बार दोनों पार्टियों के सामने है बड़ी चुनौती-
पिछले साल दिसंबर में 21 जिलों के पंचायती राज चुनाव में बीजेपी ने विपक्ष में होते हुए भी 12 जिला प्रमुख बना लिए थे। कांग्रेस ज्यादा सतर्कता बरत रही है। 6 जिलों के चुनाव में कांग्रेस के सामने ज्यादा से ज्यादा जिला प्रमुख और प्रधान बनाने का दबाव है। साल 2015 में इन जिलों में जब जिला प्रमुख प्रधान के चुनाव हुए थे, तब 6 में से 4 जिलों में बीजेपी के प्रमुख बने थे। उस वक्त बीजेपी सत्ता में थी। अब हालात बिल्कुल विपरीत है।
सीएम अशोक गहलोत का गृह जिला जोधपुर और सतीश पूनिया की सीट आमेर के चुनाव है टॉकिंग पाॅइंट-
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर के जिला प्रमुख का चुनाव और दूसरी ओर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के क्षेत्र आमेर में प्रधान का चुनाव राजनीतिक गलियारों में सबसे ज्यादा चर्चा में है। जोधपुर और आमेर का रिजल्ट सियासी मायने वाला होगा। जोधपुर और आमेर में सदस्य किसके कितने जीते हैं, यह भी अहम है।
अजय सिंह भाटी (मार्मिक धारा)