“ओम त्रयंबकम यजा महे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम् । ऊर्वारुकमिव बंध नातमृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।”
शाब्दिक अर्थ:-
हम त्रिनेत्र धारी भगवान शिव का सच्चे मन से ध्यान करते हैं। भगवान शिव हमारे जीवन में मधुरता सुख शांति को बढ़ाते हैं। हम जीवन और मृत्यु के भय से मुक्त होकर अमृत की ओर अग्रसर हो भगवान शिव हम पर ऐसी कृपा करें।
देवों के देव महादेव के वैसे तो अनेकों मंत्र हैं। लेकिन उन सभी मंत्रों में जो सर्वश्रेष्ठ मंत्र महामृत्युंजय मंत्र है। देवासुर संग्राम में जब देवताओं ने असुरों को मारा तो इस घटना से असुर गुरु शुक्राचार्य बहुत आहत हुए उन्होंने भगवान भोलेनाथ की कठोर तपस्या की तब भगवान भोलेनाथ ने शुक्राचार्य को मृत संजीवनी बूटी मंत्र का वरदान दिया। जिसके द्वारा शुक्राचार्य ने कई मृत असुरों को वापस जीवित कर दिया। उसी मृत संजीवनी बूटी मंत्र में से महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति हुई है जैसा कि इसके नाम से ही विजेते मृत्यु को जीतने वाला मंत्र अर्थात आज के इस भौतिक युग में मनुष्य युवावस्था में कई गंभीर बीमारियों से ग्रस्त है तो उसे महामृत्युंजय मंत्र का स्वयं या ब्राह्मणों द्वारा सवा लाख मंत्रों का जाप करना या करवाना चाहिए। इस मंत्र में 33 कोटि देवताओं का नाम आता है। जिसमें से 1 यम हैं महामृत्युंजय का जाप करने वाले के घर में कभी यमराज या यम के दूत नहीं आ सकते हैं अचानक दुर्घटना नहीं हो सकती है, कोई रोड एक्सीडेंट इत्यादि भी नहीं हो सकता है। क्योंकि काल के भी काल महाकाल उसकी रक्षा स्वयं करते हैं।
यही नहीं इस मंत्र के प्रभाव से व्यक्ति का भय दूर होता है।उसका आत्मविश्वास बढ़ता है और जैसा कि कहा गया है कि आत्मविश्वास सफलता की कुंजी है। आत्मविश्वास से व्यक्ति के सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं और व्यक्ति सफलता की नित नई ऊंचाइयों को छूता जाता है।
ऋषि मार्कंडेय को भी इसी मंतर के प्रभाव से यमराज यमलोक नहीं ले जा पाए थे।
विशेषकर सावन के महीने में यह मंत्र जल्दी फलीभूत होता है क्योंकि जीवन में समय का बहुत अधिक महत्व है और सावन का महीना इसकी शुरुआत करने का सबसे अच्छा समय है।
विकास शर्मा (मार्मिक धारा)