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“निर्जला एकादशी व्रत: भक्ति, सेवा और समृद्धि का मार्ग”

by marmikdhara
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निर्जला एकादशी की कहानी:

एक बार की बात है, भारत के प्रसिद्ध नगर वराणसी में एक व्यापारी रहता था। वह व्यापारी बहुत धनी और उदार मनुष्य था, लेकिन उसके बचपन से ही उसकी एक बहुत बड़ी कमजोरी थी। वह पानी पीने की बहुत अधिक आवश्यकता महसूस करता था।

एक दिन, निर्जला एकादशी का दिन आया। व्यापारी ने अपने पुराने मित्र से इसके बारे में सुना और उसे बहुत पसंद आया। उसने अपने मित्र से पूछा कि इस एकादशी के बारे में अधिक जानकारी क्या है।

मित्र ने बताया कि निर्जला एकादशी व्रत में व्रती लोग निर्जला नामक व्रत रखते हैं, जिसका अर्थ होता है “निर और जल” यानी निर्जला एकादशी में व्रती व्यक्ति पूरे दिन निर्जला होता है, अर्थात् निर्जला एकादशी के दिन उसे न भोजन करना होता है और न पानी पीना होता है।

व्यापारी ने इसे सुनकर देखा कि यह एक बहुत उच्च मान्यता वाला व्रत है, जिसका पालन करने से मनुष्य की पापों का नाश होता है और उसे भगवान की कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही इस व्रत से शारीरिक और मानसिक तंद्रा भी दूर होती है।

व्यापारी ने तत्पश्चात व्रत शुरू करने का निर्णय लिया। उसने अपने घर के पास स्थित विष्णु मंदिर में जाकर भगवान विष्णु की पूजा की और फिर व्रत की शुरुआत की। व्यापारी ने पूरे दिन भूखा और प्यासा रहकर निर्जला एकादशी का पालन किया। वह पूरे दिन मंदिर में रहकर भगवान की भक्ति की और उन्हें वंदना की।

अगले दिन व्यापारी को उठते ही एक आश्चर्यजनक बात देखने को मिली। वह अपनी कमजोरी से मुक्त हो गया था। उसे बाद में यह पता चला कि उसे व्यापार में असाध्य लाभ प्राप्त हुआ था और उसका सारा काम सरलता से हो गया था। व्यापारी ने यह अनुभव किया कि निर्जला एकादशी व्रत करने से उसे अनंत सुख और आनंद की अनुभूति हुई थी।

इसी तरह से व्यापारी ने हर साल निर्जला एकादशी का व्रत रखना शुरू किया और उसे भगवान की कृपा और धन की प्राप्ति हुई। वह धन संपादित करके नहीं, बल्क आत्मा और मन की शुद्धता को प्राथमिकता देने लगा। उसका ध्यान भगवान की भक्ति और सेवा पर लग गया। व्यापारी की सभी कठिनाइयां दूर हो गईं और उसे ध्यान और समृद्धि की अनुभूति हुई।

इस रूप में, निर्जला एकादशी व्रत की कहानी दिखाती है कि यदि हम ईश्वर की भक्ति और सेवा करते हैं, तो हमें मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति मिलती है और हमारी सभी कठिनाइयां दूर हो जाती हैं। यह व्रत हमें शुद्धता, त्याग, और सेवा का मार्ग दिखाता है और हमें सुख और समृद्धि की प्राप्ति में मदद करता है।

हर्षवर्धन शर्मा, संपादक (TFN)

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